Pages

2014-10-03

श्रीराम स्तुति - श्री राम चंद्र कृपालु भजमन

श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भाव भय दारुणम्।
नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम।
कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम। 
पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम।
भजु दीन बंधू दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम।
रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम ।
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभुषणं।
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर - धुषणं।
इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम।
मम हृदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम।
मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज  सावरों।
करुना निधान सुजान सिलू सनेहू जानत रावरो।
एही भाँती गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषी अली।
तुलसी भवानी पूजी पूनी पूनी मुदित मन मन्दिर चली।
जानी गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाए कहीं।
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फ़र्क़न लगे।
जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे ।


†*******************************-*****†

No comments:

Post a Comment