Pages

2014-12-18

ख़ून के नापाक ये धब्बे

ख़ून के नापाक ये धब्बे, ख़ुदा से कैसे छिपाओगे ...
मासूमों के क़ब्र पर चढकर, कौन से ज़न्नत जाओगे !!!
माथा चूमकर सुबह जगाया था उसे..
स्कूल का यूनिफार्म पहनाया था उसे

बस्ते में टिफन रखकर बस तक पहुचाया था उसे..
क्या पता था वो हाथ आखरी बार उठा था अलविदा क लिए..
सुना है देहश्तगर्दो ने बच्चों को मार डाला ..खुदा के लिए।
उन मासूमो का क्या कसूर था 
अभी दुनिया को जिन्होंने समझा भी ना था
उनकी आँख में गोलिया मारकर तुमने उन सपनो को भी मार दिया..
जिन्हें उनकी माँओ ने कोख में रखकर देखा था..
क्या साबित हो गया आखिरइन बच्चों की जान लेकर..
अब तुम्हारी बुजदिली भी सरेआम हो गयी..!!
दिलेरी का हरगिज़ हरगिज़ ये काम नहीं है
दहशत किसी मज़हब का पैगाम नहीं है ....!
तुम्हारी इबादत, तुम्हारा खुदा, तुम जानो..
हमें पक्का यकीन है ये कतई मजहब  नहीं है....!!

----------------------------------------------------------


No comments:

Post a Comment