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2015-04-11

जीने की तमना नहीं

हर बार सोचा कह दूं के जीने की तमना नहीं
पर तेरे पास आ के मेरे होंठ कुछ कहते नहीं
मरना अब आसान लगता है मुझे क्यों की
अब जीने की तो तमना मुझ में बची ही नहीं

आसमान मेरे सर की ऊपर है लेकिन क्या करे
सूरज की एक भी किरण मेरी सर पर नहीं
साथी बना लिया था हमने रात को अपना
मगर अब तो सितारे भी मेरा साथ देते नहीं


न तुम मिल सके और खुदा के हो न सके
दोनों में से एक भी आज मेरे साथ नहीं
दोनों के ही दर थे बस एक ही गली में
कहा पहले जाऊ बस यह सोच पाए नहीं

लड़ते ही रहे हम रोज अपने मुकदर से
मगर मुकदर से हम जीत पाए ही नहीं
सोचा था कैद कर लेंगे थोड़ी सी खूशी
फिर पता चला हाथो की लकीरों में कुछ नहीं

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