2015-12-05

संवेदनशीलता ही सहिष्णुता है

"संवेदनशीलता ही सहिष्णुता है"

एक पोस्टमैन ने एक घर के दरवाजे पर दस्तक देते हुए कहा, "चिट्ठी ले लीजिये।"
अंदर से एक बालिका की आवाज आई,"आ रही हूँ।"

लेकिन तीन-चार मिनट तक कोई न आया तो पोस्टमैन ने फिर कहा,
"अरे भाई! मकान में कोई है क्या❓अपनी चिट्ठी ले लो❗"

लड़की की फिर आवाज आई

"पोस्टमैन साहब,दरवाजे के नीचे से चिट्ठी अंदर डाल दीजिए,मैं आ रही हूँ।"
पोस्टमैन ने कहा,
"नहीं❗मैं खड़ा हूँ❗रजिस्टर्ड चिट्ठी है❗पावती पर तुम्हारे साइन चाहिये❗"
करीबन छह-सात मिनट बाद दरवाजा खुला। पोस्टमैन इस देरी के लिए  झल्लाया हुआ तो था ही और उस पर चिल्लाने वाला था ही, लेकिन दरवाजा खुलते ही वह चौंक गया, सामने एक अपाहिज कन्या जिसके पांव नहीं थे सामने खड़ी थी❗
पोस्टमैन चुपचाप पत्र देकर और उसके साइन लेकर चला गया।

हफ़्ते, दो हफ़्ते में जब कभी उस लड़की के लिए डाक आती पोस्टमैन एक आवाज देता और जब तक वह कन्या न आती तब तक खड़ा रहता।

एक दिन उस बालिका ने पोस्टमैन को नंगे पाँव देखा❗दीपावली नजदीक आ रही थी उस बालिका ने सोचा पोस्टमैन को क्या ईनाम दूँ❓

एक दिन जब पोस्टमैन डाक देकर चला गया, तब उस लड़की ने जहां मिट्टी में पोस्टमैन के पाँव के निशान बने थे उन पर काग़ज़ रख कर उन पाँवों का चित्र उतार लिया। अगले दिन उसने अपने यहाँ काम करने वाली बाई से उस नाप के जूते मंगवा लिये।

दीपावली आई और उसके अगले दिन पोस्टमैन ने गली के सब लोगों से तो ईनाम माँगा और सोचा कि अब इस बिटियाॅ से क्या इनाम लेना❓पर गली में आया हूँ तो उससे मिल ही लूँ❗
उसने दरवाजा खटखटाया।

अंदर से आवाज आई,"कौन❓"
"पोस्टमैन" !,उत्तर मिला।

बालिका हाथ में एक गिफ्ट पैक लेकर आई और कहा,"अंकल, इस पॅकेट को घर ले जाकर खोलना"।

घर जाकर जब उसने पॅकेट खोला तो विस्मित रह गया ,क्युकि उसमे एक  जोडी जूते थे,उसकी आॅखे भर आई ।
अगले दिन वह आॅफिस पहुचा और पोस्टमास्टर से फरियाद की ,की उसका फौरन तबादला कर दिया जाये ।

पोस्टमास्टर ने कारण पूछा तो पोस्टमैन ने वे जूते टेबल पर रखकर सारी कहानी कह सुनाई,और भीगी आॅखो और रूंघे कंठ से कहा-

"आज के बाद मै उस गली मे नही जा सकुगा, उस अपाहिज बच्ची ने तो मेरे नंगे पावौ को जूते दे दिये,पर मै उसे पाव कैसे दे पाऊगा "?
    संवेदनशीलता का यह श्रेष्ठ उदाहरण है ।

    "संवेदनशीलता" ही "सहिष्णुता" है 
यानी दुसरो के दु:ख-दर्द को समझना । अनुभव करना और उसके दु:ख-दर्द मे भागीदारी करना,उसमे शरीक होना ।

यह एक ऐसा मानवीय गूण है जिसके बिना ईन्सान अधुरा है ।

नियती से प्रार्थना है कि वह हमे संवेदनशील बनाये ,ताकि हम दुसरो के दु:ख-दर्द को समझ सके,और उसे दूर करने मे अपना योगदान दे सके ।

संकट की घडी मे कोई यह न समझे की वह अकेला है, अपितु उसे महसूस हो कि सारी मानवता उसके साथ खडी है ।
                
        अत: संवेदनशील बने ;सहिष्णु बने ....
               हम हिन्दुस्थानी 

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