लाओत्से कहता है, जीवन को मूल्य दो।
अहोभाग्य है कि तुम जीवित हो। और कोई चीज मूल्यवान नहीं है; जीवन मूल्यवान है। जीवन को तुम किसी चीज के लिए भी खोने के लिए तैयार मत होना, क्योंकि कोई भी चीज जीवन से ज्यादा मूल्यवान नहीं है।
लेकिन तुम जीवन को तो किसी भी चीज पर गंवाने को तैयार हो। एक आदमी ने गाली दे दी; तुम तैयार हो कि अब चाहे जान रहे कि जाए! इस आदमी ने किया ही क्या है? एक गाली पर तुम जीवन को गंवाने को तैयार हो? धन कमा कर रहेंगे, चाहे जान रहे कि जाए।
कहां-कहां तुम जीवन को गंवा रहे हो, थोड़ा सोचो। कभी धन के लिए, कभी पद के लिए, प्रतिष्ठा के लिए। जीवन ऐसा लगता है, तुम्हें मुफ्त मिला है। जो सबसे ज्यादा बहुमूल्य है उसे तुम कहीं भी गंवाने को तैयार हो। जिससे ज्यादा मूल्यवान कुछ भी नहीं है, उसे तुम ऐसे फेंक रहे हो जैसे तुम्हें पता ही न हो कि तुम क्या फेंक रहे हो। और क्या कचरा तुम इकट्ठा करोगे जीवन गंवा कर ?
लोग मेरे पास आते हैं। उनसे मैं कहता हूं, ध्यान करो। वे कहते हैं, फुर्सत नहीं। क्या कह रहे हैं वे? वे यह कह रहे हैं, जीवन के लिए फुर्सत नहीं है। कब फुर्सत होगी ? मरोगे तब फुर्सत होगी?
तब कहोगे कि मर गए; अब कैसे ध्यान करें?
जीवन के लिए तुम्हारे पास फुर्सत ही नहीं है। जीवन के स्वर को केवल वे ही सुन सकते हैं जो बड़ी गहरी फुर्सत में हैं; काम जिन्हें व्यस्त नहीं करता।
और काम व्यस्त करेगा भी नहीं, अगर तुम आवश्यकताओं पर ही ठहरे रहो। काम की व्यस्तता आती है वासना से।
कमा लीं दो रोटी, पर्याप्त है। फिर तुम पाओगे फुर्सत जीवन को जीने की। अन्यथा आपाधापी में सुबह होती है सांझ होती है, जिंदगी तमाम होती है। मरते वक्त ही पता चलता है कि अरे, हम भी जीवित थे! कुछ कर न पाए। ऐसे ही खो गया; बड़ा अवसर मिला था!
~ ओशो
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