2016-05-28

नागा साधु, जानें, इनकी यात्रा का रहस्य


कुंभ खत्म होते रातों-रात गायब होते हैं नागा साधु, जानें, इनकी यात्रा का रहस्य        

 सिंहस्थ की पहचान बने नागा साधु आखरी शाही स्नान कर रात में ही उज्जैन से रवाना हो गए। एक महीने तक सिंहस्थ की शान नागा साधुओं के एकाएक गायब होने से लोग हैरान हैं। हैरानी का कारण ये भी है कि किसी भी कुम्भ में नागा साधुओं को आते और जाते कभी कोई नहीं देख पाता। सिंहस्थ में हजारों की संख्या में नागा साधु आए और चले भी गए, लेकिन किसी ने भी ना तो उन्हें आते हुए देखा और ना ही जाते हुए।

- वे कहां से आए, कैसे आए और कहां गायब हो गए, इसकी चर्चा अब शहर में हर कोई कर रहा है।

- *जब नागा साधुओं की इस यात्रा के बारे में जानकारी हासिल की तो कई रहस्य सामने आए।*---

- राष्ट्रीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरी जी महाराज के मुताबिक, नागा साधु जंगल के रास्तों से यात्रा करते हैं। आमतौर पर ये लोग देर रात में चलना शुरू करते हैं।

- यात्रा के दौरान ये लोग किसी गांव या शहर में नहीं जाते, बल्कि जंगल और वीरान रास्तों में डेरा डालते हैं।

- रात में यात्रा और दिन में जंगल में विश्राम करने के कारण सिंहस्थ में आते या जाते हुए ये किसी को नजर नहीं आते।

- कुछ नागा साधु झुंड में निकलते है तो कुछ अकेले ही यात्रा करते हैं। ये लोग यात्रा में कंदमूल फल, फूल और पत्तियों का सेवन करते हैं।

- यात्रा के दौरान नागा साधु जमीन पर ही सोते हैं।

*ऐसे मिलती है कुंभ या सिंहस्थ में शामिल होने की सूचना ...*--

- नरेंद्र गिरी महाराज के अनुसार, हर अखाड़े में एक कोतवाल होता है। ये कोतवाल नागा साधुओं और अखाड़ों के बीच की कड़ी का काम करता है।

- दीक्षा पूरी होने के बाद जब साधु अखाड़ा छोड़कर साधना करने जंगल या कंदराओं में चले जाते हैं तो ये कोतवाल उन्हें अखाड़ों की सूचनाएं पहुंचाता है।

-सिंहस्थ, कुंभ और अर्ध कुंभ जैसे महापर्वों में ये लोग कोतवाल की सूचना पर पहुंचते हैं।

ऐसी है नागाओं की रहस्यमयी दुनिया ...

- महाराज जी ने बताया कि अखाड़ों के ज्यादातर नागा साधु हिमालय, काशी, गुजरात और उत्तराखंड में रहते हैं।

- ये सभी गांव या शहर से दूर पहाड़ों, गुफाओं और कन्दराओं में साधना करते हैं।
- नागा संन्यासी एक गुफा में कुछ साल रहने के बाद अपनी जगह बदल देते हैं।
- आमतौर पर नागा सन्यासी अपनी पहचान छिपा कर रखते हैं।


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