2016-11-28

पहली बार पौरुष भरी ललकार सुनाई दी

आज के ऐतिहासिक दिन और भारतीय सेना के अदम्य साहस और सर्जिकल स्ट्राइक पर खुशी व्यक्त करती प्रतीक दवे रतलामी की ये कविता 

सीमा पर आज सखे एक हुंकार सुनाई दी हमको ,
पहली बार पौरुष भरी ललकार सुनाई दी हमको ,
पहली बार भरतवंशी होने पर अभिमान हुआ ,
पहली बार अपनी शक्ति का हमको ज्ञान हुआ ,
पहली बार स्वर्ग में देखो खुदीराम मुस्काया है ,
पहली बार भगत ने देखो चैन से खाना खाया है ,
चिता जवानों की फिर से रंग दे बसंती गायेगी ,
शहीदों की माँ आज मुंडेर पे एक दीप जलायेगी ,
जंग खायी बंदूके देखो अपने रंग में आयी है ,
पहली बार भारत ने खुल कर गोलियां चलायी है ,
घनघोर तम से भरी हुई खत्म हुई वो रातें अब ,
नहीं करनी हमको उनसे मित्रता की कोई बातें अब
दुश्मनों से अब सार्क में भी व्यापार नहीं हो सकता है,
नवरात्रि का इससे बढ़कर उपहार नहीं हो सकता है,
देखो भारत माँ के बेटों ने ये कैसा कमाल किया,
घुस उनके ही घर में उन बकरों को हलाल किया
मोदी जैसे देशभक्त की अलग ही बात होती है ,
शेर के सामने गीदड़ की यही औकात होती है
इस बार का दशहरा अमर हमारी याद में कर दो मोदी जी,
रावणदहन दिल्ली में नहीं , इस्लामाबाद में कर दो मोदी जी।

*मूल रचना - प्रतीक दवे 'रतलामी'*

No comments:

Post a Comment