कल मैं दिल्ली से जयपुर जाने वाली एक ट्रेन में स्लीपर कोच में बैठा हुआ था ! तभी दौसा {राजस्थान} स्टेशन से एक 18-19 वर्षीय खूबसूरत लड़की चढ़ी जिसका मेरे सामने वाली बर्थ पर रिजर्वेशन था उसके पापा उसे छोड़ने आये थे।
अपनी सीट पर वैठ जाने के बाद उसने अपने पिता से कहा "डैडी आप जाइये अब, ट्रेन तो दस मिनट खड़ी रहेगी यहाँ दस मिनट का स्टॉपेज है।"
उसके पिता ने उदासी भरे शब्दों के साथ कहा "कोई बात नहीं बेटा, 10 मिनट और तेरे साथ बिता लूँगा, अब तो तुम्हारे क्लासेज शुरु हो रहे है काफी दिन बाद आओगी तुम।"
"बाय डैडी....
अरे ये क्या हुआ आपको !
अरे नहीं प्लीज"
पिता की आँखों में आंसू थे।
ट्रेन अपनी रफ्तार पकडती जा रही थी और पिता रुमाल से आंसू पोंछते हुए स्टेशन से बाहर जा रहे थे।
लड़की ने फोन लगाया..
"हेलो मम्मी..
ये क्या है यार!
जैसे ही ट्रेन स्टार्ट हुई डैडी तो रोने लग गये..
अब मैं नेक्स्ट टाइम कभी भी उनको सी-ऑफ के लिए नहीं कहूँगी.
भले अकेली आ जाउंगी ऑटो से..
अच्छा बाय..
पहुँचते ही कॉल करुँगी. डैडी का खयाल रखना ओके।" मैं कुछ देर तक लड़की को सिर्फ इस आशा से देखता रहा कि पारदर्शी चश्मे से झांकती उन आँखों से मुझे अश्रुधारा दिख जाए पर मुझे निराशा ही हाथ लगी. उन आँखों में नमी भी नहीं थी।
कुछ देर बाद लड़की ने फिर किसी को फोन लगाया- "हेलो जानू कैसे हो.... मैं ट्रेन में बैठ गई हूँ.. हाँ अभी चली है यहाँ से, कल अर्ली- मोर्निंग जयपुर पहुँच जाउंगी.. लेने आ जाना.
लव यू टू यार, मैंने भी बहुत मिस किया तुम्हे.. बस कुछ घंटे और सब्र करलो कल तो पहुँच ही जाऊँगी।" मैं मानता हूँ कि आज के युग में बच्चों को उच्च शिक्षा हेतु बाहर भेजना आवश्यक है पर इस बात में भी कोई दो राय नहीं कि इसके कई दुष्परिणाम भी हैं।
मैं यह नहीं कह रहा कि बाहर पढने वाले सारे लड़के लड़कियां ऐंसे होते हैं। मैं सिर्फ उनकी बात कर रहा हूँ जो पाश्चात्य संस्कृति की इस हवा में अपने कदम बहकने से नहीं रोक पाते और उनको माता-पिता, भाई- बहन किसी का प्यार याद नहीं रह जाता सिर्फ एक प्यार ही याद रहता है!!!
वो ये भी भूल जाते है कि उनके माता-पिता ने कैसे-कैसे साधनों को जुटा कर और किन सपनों को संजो कर अपने दिल के टुकड़े को अपने से दूर पढने भेजा है।
लेकिन बच्चे के कदम बहकने से उसकी परिणति क्या होती है??
वो ये नही जानते हैँ इसलिये सभी भाई बहिनो निवेदन है वो अपने माता पिता के साथ खिलवाड नही करे..!
शुभ रात्रि मित्रो ।
प्रशांत कुमार
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