2015-10-05

डॉक्टर और सेठ

एक गांव मेँ एक डॉक्टर था इसकी प्रैक्टिस काफी अच्छी चलती थी गांव के सभी लोग उसे ही दिखाया करते थे उसकी फीस भी काफी कम थी इस कारण से उसके यहाँ काफी भीड़ रहा करती थी

डॉक्टर साहब कभी भी मरीज की अनावश्यक जांच या अनावश्यक इलाज नहीँ किया करते थे क्योंकि उनका यह कहना था की जो मैंने किताबोँ से सीखा है वही काम मैँ करुंगा ,इस कारण उसे सब भगवान का रूप मानते थे 


,एक दिन इसी गांव का सेठ, एक बिजनेस मैन शहर से वापस गांव आया उसने देखा डॉक्टर का बिजनेस उसके बिजनेस से काफी अच्छा चल रहा है उसके दिमाग मेँ एक तरकीब आई कि मुझे भी यही बिजनेस करना चाहिए लेकिन उसके पास डिग्री नहीँ थी इस कारण से वह क्लीनिक नहीँ खोल सकता था बिजनेसमैन दिमाग से बनिया था,

उसने डॉक्टर के clinic के बिल्कुल सामने एक बिल्डिंग किराए पर ले ले ली और उस पर काफी अच्छा रंग रोगन करा लिया साथ ही साथ एक रिसेप्शन भी बना दिया जिस पर एक सुंदर सी लड़की बैठा दी फर्श पर अच्छा सा ग्रेनाइट लगा दिया और पड़ोस के गांव के एक नोसिखिये डॉक्टर को लाकर उस क्लीनिक मेँ बैठा दिया और पूरे गांव मेँ लाउडस्पीकर से ढिंढोरा पिटवा दिया कि हमारे यहाँ सबसे अच्छा और शर्तिया इलाज होता है धीरे गांव मेँ फैशन चल गया, इस सेठ की दुकान पर जाकर इलाज करवाना सास बहुओ में चर्चा का विषय बन गया और यहाँ ईलाज कराने वाला व्यक्ति समाज मेँ प्रतिष्ठित व्यक्ति कहलाने लगा ,गांव का गरीब व्यक्ति भी इस होड़ में पीछे नहीं रहाI देखते ही देखते सेठ की दुकान तेजी से चलने लगी इसपर भी उसकी भूख कम नहीँ हुई उसने डॉक्टर पर सभी उल्टे सीधे तरीके से पैसे कमाने का दबाव डाला,धीरे धीरे गांव के काबिल डॉक्टर की clinic मैँ मरीज कम होने लगे डॉक्टर साहब को रोजी रोटी की चिंता होने लगी और एक दिन सेठ डॉक्टर साहब के यहाँ मोटी तनख्वाह का लालच देकर पहुंच गया रोजी रोटी की चिंता मेँ फंसे इस डॉक्टर ने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया सेठ ने जूनियर डाक्टर को नोकरी से निकल दिया और भगवान रुपी अपने ही गावं के डाक्टर को नौकरी पर रख लिया, दुकान और ज्यादा तेज चलने लगी उसका घर और अधिक रुपयों से भर गया लेकिन .......ये कमाने की प्यास थी की बुझती ही नहीं थी, 

वह इस नए डॉक्टर पर भी अधिक रुपया कमाने का दबाव डालने लगा यह डॉक्टर मरता क्या ना करता जिसने अपनी क्लीनिक पर कभी भी पैसे के लिए मरीजोँ का इलाज नहीँ किया था,कई मरीजो का मुफ्त में भी ईलाज किया था ,अब दबाव के आगे सारे गलत काम करने लगा उसे डर था आ कि अगर वह ऐसा नहीँ करेगा तो सेठ कभी भी किसी दूसरे डाक्टर को उस की जगह बैठा देगा, गावं का भगवान रुपी डाक्टर अब वह नही रहा जो कभी हुआ करता था ।

गांव वही डॉक्टर वही लेकिन अब डॉक्टर सेठ की दुकान सेठ के लिए चला रहा है........!!
और यही से चालू होता है corporate culture


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