Q) मंदिर शब्द का क्या अर्थ है?
मन्दिर शब्द की व्याख्या निम्नानुसार की गई है
मंदिर शब्द में 'मन' और 'दर' की संधि है
मन + दर
मन अर्थात मन
दर अर्थात द्वार
मन का द्वार
तात्पर्य
जहाँ हम अपने मन का द्वार खोलते हैं,
वह स्थान मंदिर है।
म + न
म अर्थात मम = मैं
न अर्थात = नहीं
मैं नहीं
जहाँ मैं नहीं !!
अर्थात
जिस स्थान पर जाकर हमारा 'मैं' यानि अंहकार 'न' रहे वह स्थान मंदिर है।
सर्व विदित है कि ईश्वर हमारे मन में ही है,
अत: जहाँ 'मैं' न रह कर केवल ईश्वर हो वह स्थान मंदिर है।
मैं को निकाल दिया
वहाँ ईश्वर ही ईश्वर है
वहाँ ईश्वर का घर मंदिर ही है....!
विशेष अनुरोध - इस व्याख्या को हिंदी व्याकरण या संस्कृतभाषा से तुलना न करें यह तो सिर्फ़े मन की व्याख्या है भाषा व्याकरण से इसका कोई सम्वन्ध नहीं है......
मन्दिर, यह अराधना और पूजा-अर्चना के लिए निश्चित की हुई जगह या देवस्थान है। यानी जिस जगह किसी आराध्य देव के प्रति ध्यान या चिंतन किया जाए या वहां मूर्ति इत्यादि रखकर पूजा-अर्चना की जाए उसे मन्दिर कहते हैं। मन्दिर का शाब्दिक अर्थ 'घर' है। वस्तुतः सही शब्द 'देवमन्दिर', 'शिवमन्दिर', 'कालीमन्दिर' आदि हैं।
कुछ आधुनिक लोगो के मतानुसार ----------
मन्दिर शब्द की व्याख्या निम्नानुसार की गई है
मंदिर शब्द में 'मन' और 'दर' की संधि है
मन + दर
मन अर्थात मन
दर अर्थात द्वार
मन का द्वार
तात्पर्य
जहाँ हम अपने मन का द्वार खोलते हैं,
वह स्थान मंदिर है।
म + न
म अर्थात मम = मैं
न अर्थात = नहीं
मैं नहीं
जहाँ मैं नहीं !!
अर्थात
जिस स्थान पर जाकर हमारा 'मैं' यानि अंहकार 'न' रहे वह स्थान मंदिर है।
सर्व विदित है कि ईश्वर हमारे मन में ही है,
अत: जहाँ 'मैं' न रह कर केवल ईश्वर हो वह स्थान मंदिर है।
मैं को निकाल दिया
वहाँ ईश्वर ही ईश्वर है
वहाँ ईश्वर का घर मंदिर ही है....!
विशेष अनुरोध - इस व्याख्या को हिंदी व्याकरण या संस्कृतभाषा से तुलना न करें यह तो सिर्फ़े मन की व्याख्या है भाषा व्याकरण से इसका कोई सम्वन्ध नहीं है......
मंदिर शब्द की ऐसी व्याख्या बिलकुल ही गलत है।
ReplyDeleteकृपा करके पाणिनीय सूत्रों को पढ़िए।
मनगढ़ंत व्याख्या को गूगल पर नहीं डालनी चाहिए।
धातु +प्रत्यय पढ़िए।
मन्द् धातु से इरच् प्रत्यय है।
हाथ जोड़ता हूँ आपको। कृपया ऋषि मुनियों की
शाब्दिक कार्य का अध्ययन करिये। आप ऐसे करते रहे तो ऋषि मुनियों का शाप लगेगा आपको।
राजेश्वर जी आपके सुझाव हेतु कोटि कोटि धन्यबाद, यह व्याख्या आधुनिक मतानुसार है इस व्याख्या को हिंदी व्याकरण या संस्कृतभाषा से तुलना न करें यह तो सिर्फ़े मन की व्याख्या है भाषा व्याकरण से इसका कोई सम्वन्ध नहीं है. मेरा ऐसा मानना है की जिस स्थान पर जाकर हमारा 'मैं' यानि अंहकार 'न' रहे वह स्थान मंदिर है।
Deleteसर्व विदित है कि ईश्वर हमारे मन में ही है,
अत: जहाँ 'मैं' न रह कर केवल ईश्वर हो वह स्थान मंदिर है।
आपके विचारो का हमेशा स्वागत रहेगा। कृपया आगे भी हमें अपने बहुमूल्य विचारो से हमारा उत्साहवर्धन अवश्य करते रहें . धन्यबाद