2016-10-22

दीपावली पर मां लक्ष्मी के आठ रूपों की पूजा दिलाएगी धन-सम्पन्नता

दीपावली पर मां लक्ष्मी के आठ रूपों की पूजा दिलाएगी धन-सम्पन्नता

मां लक्ष्मी के आठ अलग-अलग रूप हैं, जिन्हें अष्टलक्ष्मी कहा गया है। अष्टलक्ष्मी की आराधना से मनुष्य की सभी समस्याओं का नाश होता है और वह समृद्धि, धन, यश, ऐश्वर्य व संपन्नता प्राप्त करता है। 



दीपावली का त्यौहार पांच दिनों तक चलने  वाला महापर्व है। कार्तिक कृष्णपक्ष की अमावस्या को लक्ष्मीजी के पूजन का विशेष विधान है। ब्रह्म पुराण के अनुसार इस दिन अर्धरात्रि के समय महालक्ष्मीजी सद्ग्रहस्थों के मकानों में यत्र-तत्र विचरण करती हैं। इसलिए इस दिन घर-बाहर को साफ-सुथरा कर सजाया-सँवारा जाता है। मां लक्ष्मी की कृपा से मनुष्य को धन-वैभव और सुख- संपदा की प्राप्ति होती है।

अष्टविद लक्ष्मी अर्थात - आद्य लक्ष्मी, गज लक्ष्मी, ऐश्वर्य लक्ष्मी,  धान्य लक्ष्मी, विजय लक्ष्मी, वीर लक्ष्मी, संतान लक्ष्मी, धन लक्ष्मी आदि । यानी कि आठ स्वरूपों में लक्ष्मी के अलग-अलग स्वरूपों के साथ अलग-अलग गुणों का प्रभाव एवं इनसे जुड़ी साधना-आराधना  है।... जानिए लक्ष्मी जी के इन आठ रूपों अर्थात अष्टलक्ष्मी के रहस्य को – 




  1. आद्य लक्ष्मी, 
  2. गज लक्ष्मी, 
  3. ऐश्वर्य लक्ष्मी,  
  4. धान्य लक्ष्मी, 
  5. विजय लक्ष्मी, 
  6. वीर लक्ष्मी, 
  7. संतान लक्ष्मी, 
  8. धन लक्ष्मी


आद्य लक्ष्मी : माता लक्ष्मी के विभिन्न स्वरूपों में आद्य लक्ष्मी भी हैं, जो गुलाबी कमल पर विराजमान हैं। चतुरहस्था हैं, जिनके सीधे हाथ में कमल, दूसरे में वर मुद्रा, तीसरे बाएं हाथ में ध्वज पताका, चौथे में धन देने की मुद्रा दिखाई गई है। माता का यह स्वरूप आद्य शक्ति मां जगदंबा से जुड़ा हुआ है, जिनकी साधना करने से आद्या शक्ति की कृपा प्राप्त होती है। जीवन के हर स्तंभ पर धन-धान्य की प्राप्ति होती है।


गजलक्ष्मी : गज पर विराजमान चतुरहस्था गजलक्ष्मी हैं, जिनके साथ दो अन्य गज दाएं व बाएं कलश से माता पर अमृत की बौछार करते हुए खड़े हैं। मान्यता है कि इनकी साधना करने से माता की कृपा चिरकाल तक बनी रहती है। साथ ही कर्म व धर्म के मर्म को समझाते हुए अपने जीवन की गति को आगे बढ़ाने की अनुक्रमणिका शास्त्रोक्त रूप से बताई गई है, जिसमें बिना ईष्ट कृपा के सब कुछ अधूरा माना गया है।



संतान लक्ष्मी : ये कमलासन हैं, छह हाथ हैं, बार्इं ओर एक हाथ में कलश, संतान की सुरक्षा के लिए ढाल है, गोद में संतान को बैठाए हुए हैं। दार्इं ओर स्वर्ण व रजत कलश, वर मुद्रा है। संतान के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए इनका पूजन किया जाता है। केसरिया वस्त्र धारण किए हैं। एकाग्रचित प्रसन्न मुद्रा में हैं।



धान्य लक्ष्मी : ये आठ भुजाधारी हैं। हरित वर्ण के वस्त्र धारण किए हैं। बाएं हाथ में क्रमश: कमल, कदली फल, पारीजात पुष्प, वर देने की मुद्रा, दाएं हाथ में ईख, धान्य कुंभी, वर मुद्रा तथा दिव्य पुष्प सुशोभित हैं।  अष्ट भुजाधारी देवी अपने रूप में प्रसन्न चित्त तथा वात्सल्य का रूप दिखाते हुए संसार के साथ-साथ तीनों लोकों को अपने आशीर्वाद से सिंचित करती हुई भोगों को देने वाली है, जिसमें धन-धान्य व लाभ की प्राप्ति होती है।



विजय लक्ष्मी : एकाग्रचित्त अवस्था, लाल वस्त्र धारण किए हुए। अष्ट भुजाधारी, जिसमें बाई ओर शंख, धनुष, खप्पर, धन देने की मुद्रा है तथा दाहिनी ओर विजयश्री का आशीर्वाद देते हुए अंकुश, तीर और त्रिशूल। मान्यता के आधार पर इनकी साधना से विजय की प्राप्ति होती है। इनकी कृपा से शत्रु दमन होता है। एक पक्ष और है, जिसके अंतर्गत माता के इस स्वरूप की साधना से नकारात्मक विचारों पर लगाम लगती है।



ऐश्वर्य लक्ष्मी : श्वेत तथा सुनहरे वस्त्र धारण किए हुए चतुरहस्था माता लक्ष्मी के दोनों हाथों में कमल, वर तथा ऐश्वर्य देने की मुद्रा है। ऐश्वर्य लक्ष्मी की वैदोक्त रीति से साधना करने पर संसार में यश, कीर्ति व ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। साथ ही दीर्घकाल तक नष्ट न होने वाला ऐश्वर्य भी साधक को प्रात होता है। इनकी साधना प्रति दिवस की मानी जाती है।



वीर लक्ष्मी : कमलासन, अष्टभुजा धारी, नील वर्ण धारण किए हुए हैं। बाएं हाथ में शंख, ढाल, दंड पाश, वर मुद्रा है। दाहिनी ओर तलवार, वीरता का आशीर्वाद तथा गुलाबी पुष्प है। ऋग्वेद के 84वें मंडल में इनका उल्लेख है। हालांकि शब्द ब्रह्म है, नाद ब्रह्म है तथा ब्रह्म से संबंधित सभी शक्तियां अष्टविद लक्ष्मी के हाथों में है, इसलिए इनकी साधना का अलग-अलग प्रभाव बताया गया है।


धन लक्ष्मी : स्वर्ण का सिंहासन, षष्ठ हस्था, गुलाबी व हरित वर्ण में में हैं। समस्त स्वर्णाभूषणों से सजी हुईं, इनकी बाई ओर शंख, कलश। दाई ओर चक्र, पाश, अंकुश  तथा सीधे हाथ से स्वर्ण की बौछार वाली मुद्रा है। ऋग्वेदोक्त सूक्त में इस स्वरूप की व्याख्या ऋचाओं के माध्यम से की गई है। देवी के इस रूप की स्तुति से शरीर रूपी धन, परिवार रूपी धन के साथ ही संपन्नता प्राप्त होती है।




श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्र

आदिलक्ष्मी | Aadi Lakshmi

सुमनसवन्दित सुन्दरि माधवी चन्द्र सहोदरीहेममये |
मुनिगणमंडित मोक्षप्रदायिनी मंजुलभाषिणीवेदनुते ||
पंकजवासिनी देवसुपुजित सद्रुणवर्षिणी शांतियुते |
जय जय हे मधुसुदन कामिनी आदिलक्ष्मी सदापलीमाम ||१||

धान्यलक्ष्मी | Dhanya Lakshmi

अहिकली कल्मषनाशिनि कामिनी वैदिकरुपिणी वेदमये |
क्षीरमुद्भव मंगलरूपिणी मन्त्रनिवासिनी मन्त्रनुते | |
मंगलदायिनि  अम्बुजवासिनि देवगणाश्रित पाद्युते |
जय जय हे मधुसुदन कामिनी धान्यलक्ष्मी सदा पली माम|| २||

धैर्यलक्ष्मी | Dhairya Lakshmi

जयवरवर्णिनी  वैष्णवी भार्गवी मन्त्रस्वरूपिणी  मन्त्रम्ये |
सुरगणपूजित शीघ्रफलप्रद ज्ञानविकासिनी शास्त्रनुते ||
भवभयहारिणी पापविमोचनि साधुजनाश्रित पादयुते |
जय जय हे मधुसुदन कामिनी धैर्यलक्ष्मी सदापलेमाम ||३||

गजलक्ष्मी | Gaj Lakshami

जयजय दुर्गतिनाशिनी कामिनी सर्वफलप्रद शास्त्रमये |
रथगज तुरगपदादी  समावृत परिजनमंडित लोकनुते ||
हरिहर ब्रम्हा सुपूजित सेवित तापनिवारिणी पादयुते |
जय जय हे मधुसुदन कामिनी गजलक्ष्मी  रूपेण पलेमाम ||४||

संतानलक्ष्मी | Santan Lakshmi

अहिखग वाहिनी मोहिनी  चक्रनि रागविवर्धिनी  लोकहितैषिणी
स्वरसप्त भूषित गाननुते सकल सूरासुर देवमुनीश्वर  ||
मानववन्दित पादयुते |
जय जय हे मधुसुदन कामिनी संतानलक्ष्मी त्वं पालयमाम || ५ ||

विजय लक्ष्मी | Vijaya Lakshmi

जय कमलासनी सद्रतिदायिनी ज्ञानविकासिनी गानमये |
अनुदिनमर्चित कुमकुमधूसर-भूषित वासित वाद्यनुते ||
कनकधस्तुति  वैभव वन्दित शंकर देशिक मान्य पदे |
जय जय हे मधुसुदन कामिनी विजयलक्ष्मी सदा पालय माम ||६ ||

विद्यालक्ष्मी | Vidya Lakshmi / ऐश्वर्य लक्ष्मी

प्रणत सुरेश्वरी भारती भार्गवी शोकविनासिनी रत्नमये |
मणिमयभूषित कर्णविभूषण शांतिसमवृत  हास्यमुखे ||
नवनिधिदायिनी  कलिमहरिणी कामित फलप्रद  हस्त युते  |
जय जय हे मधुसुदन कामिनीविद्यालक्ष्मी  सदा पालय माम  ||

धनलक्ष्मी | Dhan Lakshmi

धिमिधिमी धिंधिमी धिंधिमी धिंधिमी दुन्दुभी नाद सुपूर्णमये |
घूमघूम घुंघुम घुंघुम घुंघुम शंखनिनाद सुवाद्यनुते ||
वेदपूराणेतिहास सुपूजित वैदिकमार्ग प्रदर्शयुते |
जय जय हे मधुसुदन कामिनी धनलक्ष्मी रूपेण पालय माम || ८||

No comments:

Post a Comment