2015-09-14

हिन्दी के सम्बन्ध में विद्वानॊ के विचार


हिन्दी को भारत की राजभाषा के रूप में १४ सितम्बर सन् १९४९ को स्वीकार किया गया। इसके बाद संविधान में राजभाषा के सम्बन्ध में धारा ३४३ से ३५२ तक की व्यवस्था की गयी। इसकी स्मृति को ताजा रखने के लिये १४ सितम्बर का दिन प्रतिवर्ष हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है।



"हिन्दी जनमन की अभिलाषा, यह राष्ट्रप्रेम की परिभाषा
भारत जिसमें प्रतिबिम्बित हो, यह ऐसी प्राणमयी भाषा।


Hindi's motto

जिस भाषा में तुलसीदास जैसे कवि ने कविता की हो, वह अवश्य ही पवित्र है और उसके सामने कोई भाषा नहीं ठहर सकती। 
- महात्मा गाँधी 


अगर  हिंदुस्तान को सचमुच आगे बढ़ना है, तो चाहे कोई माने या न माने, राष्ट्रभाषा तो हिंदी ही बन सकती है, क्योंकि जो स्थान हिंदी को प्राप्त है, वह किसी और भाषा को नहीं मिल सकता है। 
- महात्मा गाँधी 


राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है। मेरा यह मत है कि हिंदी ही हिंदुस्तान की राष्ट्रभाषा हो सकती है और होनी चाहिए। 
- महात्मा गाँधी 


जनता की बात जनता की भाषा में होनी चाहिए। 
- महात्मा गाँधी 


यद्यपि मैं उन लोगों में से हूँ, जो चाहते हैं और जिनका विचार है कि हिंदी ही भारत की राष्ट्रभाषा हो सकती है।
- लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक


है भव्य भारत ही हमारी मातृभूमि हरी भरी। हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा और लिपि है नागरी ॥ - मैथिलीशरण गुप्त
हिन्दी एक जानदार भाषा है। वह जितनी बढ़ेगी, देश का उतना ही नाम होगा।
- जवाहर लाल नेहरू


हिंदी भारतवर्ष के हृदय-देश स्थित करोड़ों नर-नारियों के हृदय और मस्तिष्क को खुराक देने वाली भाषा है।
- हज़ारीप्रसाद द्विवेदी


इस समग्र देश की एकता के लिए हिंदी अनिवार्य है।
- राजा राममोहन राय


हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा तो है ही, यही जनतंत्रात्मक भारत में राजभाषा भी होगी।
- सी. राजागोपालाचारी


जो राष्ट्रप्रेमी है, उसे राष्ट्रभाषा प्रेमी होना चाहिए।
- रंगनाथ रामचंद्र दिवाकर


हिंदी को गंगा नहीं बल्कि समुद्र बनना होगा।
- आचार्य विनोबा भावे


देश के विभिन्न भागों के निवासियों के व्यवहार के लिए सर्वसुगम और व्यापक तथा एकता स्थापित करने के साधन के रूप में हिंदी का ज्ञान आवश्यक है।
- सी. पी. रामास्वामी अय्यर


हिंदी ही उत्तर और दक्षिण को जोड़ने वाली समर्थ भाषा है।
- अनन्त शयनम अयंगर


लोग अपनी-अपनी मातृभाषा की रक्षा करते हुए सामान्य भाषा के रूप में हिन्दी को ग्रहण करें
- अरविंद दर्शन के प्रणेता अरविंद घोष




भारत की भाषायी स्थिति और उसमें हिंदी के स्थान को देखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि हिंदी आज भारतीय जनता के बीच राष्ट्रीय संपर्क की भाषा है। हिंदी की भाषागत विशेषता भी यह है कि उसे सीखना और व्यवहार में लाना अन्य भाषाओं के अपेक्षा ज्यादा सुविधाजनक और आसान है। हिंदी भाषा में एक विशेषता यह भी है कि वह लोक भाषा की विशेषताओं से संपन्न है, बड़े पैमाने पर लोचदार भाषा है, जिससे वह दूसरी भाषाओं में शब्दों, वाक्य-संरचना और बोलचालजन्य आग्रहों को स्वीकार करने में समर्थ है। इसके अलावा ध्यान देने की बात यह है कि हिंदी में आज विभिन्न भारतीय भाषाओं का साहित्य लाया जा चुका है। विभिन्न भारतीय भाषाओं के लेखकों को हिंदी के पाठक जानते हैं, उनके बारे में जानते हैं। भारत की भाषायी विविधता के बीच हिंदी की भाषायी पहचान मुख्यत: हिंदी है। हिंदी राष्ट्रीय एकता और भाषायी एकता का आधार है। भारत में हिंदी की जो राष्ट्रीय भूमिका है, उसे अंतरराष्ट्रीय महत्व को महसूस कराने में समर्थ है।

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