भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी ने भारत में 32 साल बाद हो रहे 10वें विश्व हिंदी सम्मेलन का उद्घाटन किया। उन्होंने एक किस्सा सुनाते हुए कहा कि उन्हें चाय बेचते-बेचते हिंदी सीखने का मौका मिला। उन्होंने बताया कि गुजरात में उत्तर प्रदेश से लोग दूध लेकर ट्रेन से आते थे। मैं उनके लिए चाय लेकर जाता था। उन्हें गुजराती नहीं आती थी। मेरे पास हिंदी सीखने के अलावा कोई चारा नहीं था। इसी क्रम में मैंने हिंदी सीखी।
प्रधानमंत्री ने कहा कि मेरी मातृभाषा गुजराती है. मैं कभी सोचता हूं कि यदि मुझे हिंदी भाषा बोलना या समझना नहीं आता तो मेरा क्या हुआ होता. मैं लोगों तक कैसे अपनी बात पहुंचाता. मुझे तो व्यक्तिगत रुप से भाषा की ताकत क्या होती है. उसका भली भांति अंदाज है.
मोदीजी ने चीन, मंगोलिया, मॉरिशस आदि देशों की अपनी यात्रा के कुछ संस्मरण बताते हुए यह जताया कि हिंदी पूरी दुनिया में अपनी छाप छोड़ रही है और इसकी अहमियत बढ़ रही है।
मोदीजी ने टेक्नोलॉजी और भाषा के संबंध के बारे में कहा कि जानकार बताते हैं कि डिजिटल वर्ल्ड में तीन भाषाओं का ही बोलबाला रहने वाला है- अंग्रेजी, चीनी और हिंदी। टेक्नोलॉजी की दुनिया में भाषा का बाजार बढ़ने वाला है। इसमें हिंदी की अहमियत बढ़ने वाली है।
मोदीजी ने कहा कि अभी तो आप सिंहस्थ की तैयारियों में हो. इसके पहले ही भोपाल में हिंदी के महाकुंभ का दर्शन करने का अवसर मिला है।
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