2015-09-08

दवाई इतनी भी महंगी न थी के मैं ला ना सका ।

पहली बार किसी गज़ल को पढ़कर आंसू आ गए ।
,
शख्सियत, ए 'लख्ते-जिगर, कहला न सका ।
जन्नत,, के धनी "पैर,, कभी सहला न सका । .
दुध, पिलाया उसने छाती से निचोड़कर,
मैं 'निकम्मा, कभी 1 ग्लास पानी पिला न सका ।
.
बुढापे का "सहारा,, हूँ 'अहसास' दिला न सका
पेट पर सुलाने वाली को 'मखमल, पर सुला न सका ।
.
वो 'भूखी, सो गई 'बहू, के 'डर, से एकबार मांगकर,
मैं "सुकुन,, के 'दो, निवाले उसे खिला न सका ।
.
नजरें उन 'बुढी, "आंखों,, से कभी मिला न सका ।
वो 'दर्द, सहती रही में खटिया पर तिलमिला न सका ।
.
जो हर रोज 'ममता, के रंग पहनाती रही मुझे,
उसे दीवाली पर दो 'जोड़, कपडे सिला न सका ।
.
"बिमार बिस्तर से उसे 'शिफा, दिला न सका ।
'खर्च के डर से उसे बडे़ अस्पताल, ले जा न सका ।
.
"माँ" के बेटा कहकर 'दम, तौडने बाद से अब तक सोच रहा हूँ,
'दवाई, इतनी भी "महंगी,, न थी के मैं ला ना सका ।






हम सब की मातेश्वरी को कोटि कोटि प्रणाम

1 comment:

  1. बहुत सुंदर एक माँ को समर्पित गजल

    ReplyDelete