2015-09-08

अलौकिक शक्तियां

मनुष्य के अन्दर छुपी है अलौकिक शक्तियां


 वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर यह प्रमाणित हो चुका है कि मनुष्य का शरीर जल, वायु, अग्नि, पृथ्वी तथा आकाश इन पांच तत्वों से निर्मित होता है। और इसमे कोई संदेह नही कि जो चीज जिस तत्व से बनी हो उसमे उस तत्व के सारे गुण समाहित होते हैं। इस लिए पंचतत्वों से निर्मित मनुष्यों के शरीर में जल की शीतलता, वायु का तीब्र वेग, अग्नि का तेज, पृथ्वी की गुरूत्वाकर्षण, ओर आकाश की विशालता समाहित होता है। इस तरह मनुष्य अनंत शक्तियों का स्वामी है तथा इस स्थुल शरीर के अंदर अलौकिक शक्तियाँ छुपी हुई है। 

परंतु हमारे अज्ञानता के कारण हमारे अंदर की शक्तियाँ सुप्तावस्था में पड़ी हुई है। जिसे कोई भी व्यक्ति कुछ प्रयासों के द्वारा अपने अन्दर सोई हुई शक्तियों को जगाकर अनंत शक्तियों का स्वामी बन सकता है। मनुष्य के अन्दर की सोई हुई इसी शक्ति को ही कुण्डलिनी कहा गया है। 

कुण्डलिनी मनुष्य के शरीर की अलौकिक संरचना है, जिसके अंदर ब्रह्मंड की समस्त शक्तियाँ समाहित है। अगर सही शब्दों मे कहा जाय तो मनुष्य के अंदर ही सारा ब्रह्मंड समाया हुआ है। आज से हजारों साल पहले गुरू शिष्य परंपरा के अनुसार गुरू अपने शिष्यों की कुण्डलिनी शक्ति को योगाभ्यास तथा शक्तिपात के माध्यम से जागृत किया करते थे। जीसके बाद शिष्य अलौकिक शक्तियों का स्वामी बन कर समाज कल्याण जथा जनहित में इन शक्तियों का सद्उपयोग किया करते थे। 

कुण्डलिनी जागरण के पश्चात मनुष्य के अन्दर अनेको अलौकिक एवं चमत्कारिक शक्तियों का प्रार्दुभाव होनेे लगता है और मनुष्य मनुष्यत्व से देवत्व की ओर अग्रसर होने लगता है। कुण्डलिनी जागरण के बाद अनेकों चमत्कारिक घटनायें घटने लगती हैं। किसी भी व्यक्ति को देखते हि उसका भुत, भविष्य, वर्तमान साधक के सामने स्पस्ट रूप से दिखाई देने लगता है। साथ ही सामने वाले व्यक्ति की मन की बातें भी स्पष्ट हो जाती हैं। कुण्डलिनी जागृत साधक हजारों कि.मी. दुर घट रही घटनााओं को भी स्पष्ट रूप से देख सकता है और दुर बैठे हुए व्यक्ति की मन की बातें भी पढ़ सकता है। 

प्राचिन ग्रंथों मे ऐसे अनेकों उल्लेख मिलते है। यह सब कुण्डलिनी जागरण की शक्ति से ही संभव है। कुण्डलिनी जागरण के पश्चात कठिन से कठिन तथा असंभव से असंभव कार्य को भी संभव किया जा सकता है। कुण्डलिनी क्या है मनुष्य के अन्दर छिपी हुई अलौकिक शक्ति को कुण्डलिनी कहा गया है। 

कुण्डलिनी वह दिव्य शक्ति है जिससे जगत मे जीव की श्रृष्टि होती है। कुण्डलिनी सर्प की तरह साढ़े तीन फेरे लेकर मेरूदण्ड के सबसे निचले भाग में मुलाधार चक्र में सुषुप्त अवस्था में पड़ी हुई है। मुलाधार में सुषुप्त पड़ी हुई कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत होकर सुषुम्ना में प्रवेश करती है तब यह शक्ति अपने स्पर्श से स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपुर चक्र, अनाहत चक्र, तथा आज्ञा चक्र को जाग्रत करते हुए मस्तिष्क में स्थीत सहस्त्रार चक्र मंे पहंुच कर पुर्णंता प्रदान करती है इसी क्रिया को पुर्ण कुण्डलिनी जागरण कहा जाता है। 

जब कुण्डलिनी जाग्रत होती है मुलाधार चक्र में स्पंदन होने लगती है उस समय ऐसा प्रतित होता है जैसे विद्युत की तरंगे रीढ़ की हड्डी के चारों तरफ घुमते हुए उपर की ओर बढ़ रहा है। साधकांे के लिए यह एक अनोखा अनुभव होता है। जब मुलाधार से कुण्डलिनी जाग्रत होती है तब साधक को अनेको प्रकार के अलौकिक अनुभव स्वतः होने लगते हैं। जैसे अनेकों प्रकार के दृष्य दिखाई देना अजीबोगरीब आवाजें सुनाई देना, शरीर मे विद्युत के झटके आना, एक ही स्थान पर फुदकना, इत्यादि अनेकों प्रकार की हरकतें शरीर मंे होने लगती है। कई बार साधक को गुरू अथवा इष्ट के दर्शन भी होते हैं। 

कुण्डलिनी शक्ति को जगाने के लिए प्रचिनतम् ग्रंथों मे अनेकों प्रकार की पद्धतियों का उल्लेख मिलता है। जिसमें हटयोग ध्यानयोग, राजयोग, मत्रंयोग तथा शक्तिपात आदि के द्वारा कुण्डलिनी शक्ति को जाग्रत करने के अनेकांे प्रयोग मिलते हैं। परंतु मात्र भस्रीका प्राणायाम के द्वारा भी साधक कुछ महिनों के अभ्यास के बाद कुण्डलिनी जागरण की क्रिया में पुर्ण सफलता प्राप्त कर सकता है। 

जब मनुष्य की कुण्डलीनी जाग्रत होती है तब वह उपर की ओर उठने लगती है तथा सभी चक्रों का भेदन करते हुए सहस्त्रार चक्र तक पंहुचने के लिए बेताब होने लगती है। तब मनुष्य का मन संसारिक काम वासना से विरक्त होने लगता है और परम आनंद की अनुभुति होने लगती है। और मनुष्य के अंदर छुपे हुए रहस्य उजागर होने लगते हैं। मनुष्यों के भीतर छुपे हुए असिम और अलौकिक शक्तियों को वैज्ञानिकों ने भी स्वीकार किया है। 
आज कल पश्चिमी वैज्ञानिकों के द्वारा शरीर में छुपे हुए रहस्यों को जानने के लिए अनेकों शोध किये जा रहे हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि जिस तरह पृथ्वी के उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुवों मे अपार आश्चर्य जनक शक्तियों का भंडार है ठीक उसी प्रकार मनुष्य के मुलाधार तथा सहस्त्रार चक्रों मे आश्चर्यजनक शक्तियों का भंडार है। आगामी अंकों में कुण्डलिनी जागरण करने की विधियो को विस्तार पुर्वक लिखने का प्रयास रहेगा जिससे कोइ भी साधक अपनी कुण्डलिनी शक्ति को जगा कर आत्म ज्ञान प्राप्त कर सके। 

No comments:

Post a Comment