2015-11-05

प्रभु से रिश्ता

((((((( प्रभु से रिश्ता )))))))


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एक गरीब बालक था जो
कि अनाथ था।
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एक दिन वो बालक एक
संत के आश्रम मेँ आया और
बोला, बाबा आप सबका
ध्यान रखते है,
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मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है
तो क्या मैँं यहां आपके आश्रम
में रह सकता हुं ?
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बालक की बात सुनकर संत
बोले बेटा तेरा नाम क्या है ?
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उस बालक ने कहा मेरा कोई
नाम नहीं है।
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तब संत ने उस बालक का
नाम रामदास रखा और बोले
की अब तुम यहीं आश्रम में
रहना।
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रामदास वही रहने लगा और
आश्रम के सारे काम भी करने
लगा।
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उन संत की आयु 80 वर्ष की
हो चुकी थी।
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एक दिन वो अपने शिष्यों से
बोले की मुझे तीर्थ यात्रा पर
जाना है।
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तुम मेँ से कौन कौन मेरे मेरे
साथ चलेगा और कौन कौन
आश्रम में रुकेगा ?
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संत की बात सुनकर सारे
शिष्य बोले की हम आपके
साथ चलेंगे.!
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क्योंकि उनको पता था की
यहां आश्रम में रुकेंगे तो सारा
काम करना पड़ेगा।
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इसलिये सभी बोले की हम
तो आपके साथ तीर्थ यात्रा पर
चलेंगे।
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अब संत सोच में पड़ गये की
किसे साथ ले जाये और किसे
नही?
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क्योंकि आश्रम पर किसी का
रुकना भी जरुरी था।
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बालक रामदास संत के पास
आया और बोला बाबा अगर
आपको ठीक लगे तो मैं यहीं
आश्रम पर रुक जाता हूं ,,,
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संत ने कहा ठीक है पर तुझे
काम करना पड़ेगा।
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आश्रम की साफ सफाई मे
भले ही कमी रह जाये पर
ठाकुर जी की सेवा मे कोई
कमी मत रखना।
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रामदास ने संत से कहा की
बाबा मुझे तो ठाकुर जी की
सेवा करनी नहीं आती
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आप बता दीजिये कि ठाकुर
जी की सेवा कैसे करनी है ?
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फिर मैं कर दूंगा।
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संत रामदास को अपने साथ
मंदिर ले गये
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वहां उस मंदिर मे राम दरबार
की झाँकी थी।
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श्री राम जी,सीता जी, लक्ष्मण
जी और हनुमान जी थे।
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संत ने बालक रामदास को
ठाकुर जी की सेवा कैसे करनी
है सब सिखा दिया।
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रामदास ने गुरु जी से कहा
की बाबा मेरा इनसे रिश्ता क्या
होगा ये भी बता दो
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क्योँकि अगर रिश्ता पता चल
जाये तो सेवा करने में आनंद
आयेगा।
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उन संत ने बालक रामदास से
कहा की तु कहता था ना की
मेरा कोई नहीँ है...
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तो आज से यह राम जी और
सीता जी तेरे माता-पिता हैं।
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रामदास ने साथ में खड़े
लक्ष्मण जी को देखकर कहा
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अच्छा बाबा और ये जो पास
में खड़े है वोह कौन है ?
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संत ने कहा ये तेरे चाचा जी हैं
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और हनुमान जी के लिये कहा
की ये तेरे बड़े भैय्या है।
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रामदास सब समझ गया और
फिर उनकी सेवा करने लगा।
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संत शिष्योँ के साथ यात्रा पर
चले गये।
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आज सेवा का पहला दिन था
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रामदास ने सुबह उठकर स्नान
किया और भीक्षा माँगकर लाया
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और फिर भोजन तैयार किया
फिर भगवान को भोग लगाने
के लिये मंदिर आया।
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रामदास ने श्री राम सीता
लक्ष्मण और हनुमान जी आगे
एक-एक थाली रख दी
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और बोला अब पहले आप
खाओ फिर मैं भी खाऊँगा।
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रामदास को लगा की सच मे
भगवान बैठकर खायेंगे.
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पर बहुत देर हो गई रोटी तो
वैसी की वैसी थी।
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तब बालक रामदास ने सोचा
नया नया रिश्ता बना है तो
शरमा रहे होंगे।
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रामदास ने पर्दा लगा दिया बाद
मे खोलकर देखा तब भी खाना
वैसे का वैसा पड़ा था।
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अब तो रामदास रोने लगा की
मुझसे सेवा मे कोई गलती हो
गई इसलिये खाना नही खा रहे
हैं।
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और यह नहीँ खायेंगे तो मैँ भी
नही खाऊँगा और मैं भूख से
मर जाऊँगा..!
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इसलिये मै तो अब पहाड़ से
कूदकर ही मर जाऊँगा।
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रामदास मरने के लिए निकल
जाता है तब भगवान राम जी
हनुमान जी को कहते हैं
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हनुमान जाओ उस बालक
को लेकर आओ और बालक
से कहो की हम खाना खाने के
लिये तैयार हैं।
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हनुमान जी जाते हैं और
रामदास कूदने ही वाला होता
है कि हनुमान जी पीछे से पकड़
लेते हैं और बोलते है क्या कर
रहे हो?
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रामदास कहता है आप कौन?
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हनुमान जी कहते है मै तेरा
भैय्या हूँ इतनी जल्दी भूल गये?
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रामदास कहता है अब आए
हो, इतनी देर से वहां बोल रहा
था की खाना खा लो तब आये
नहीं अब क्यों आ गए?
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तब हनुमान जी बोले पिता श्री
का आदेश है, अब हम सब साथ
बैठकर खाना खाएंगे।
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फिर राम जी,सीता जी, लक्ष्मण
जी ,हनुमान जी साक्षात बैठकर
भोजन करते हैं।
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इसी तरह रामदास रोज उनकी
सेवा करता और भोजन करता।
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सेवा करते करते 15 दिन हो गये,
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एक दिन रामदास ने सोचा
की कोई भी माँ बाप हो वो
घर में काम तो करते ही हैं।
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पर मेरे माँ बाप तो कोई
काम नहीँ करते सारे दिन खाते
रहते हैं।
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मैं ऐसा नहीं चलने दूंगा।
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रामदास मंदिर जाता है और
कहता है, पिता जी कुछ बात
करनी है आपसे।
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राम जी कहते हैं बोल बेटा
क्या बात है ?
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रामदास कहता है कन अब से
मैं अकेले काम नहीं करुंगा
आप सबको भी काम करना
पड़ेगा,
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आप तो बस सारा दिन खाते
रहते हो और मैँ काम करता
रहता हूँ अब से ऐसा नहीँ होगा।
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राम जी कहते हैं तो फिर
बताओ बेटा हमें क्या काम
करना है?
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रामदास ने कहा माता जी अब
से रसोई आपके हवाले.
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और चाचा जी(लक्ष्मणजी)
आप सब्जी तोड़कर लाओँगे.
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और भैय्या जी (हनुमान जी)
आप लकड़ियाँ.लायेँगे.
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और पिता जी(रामजी) आप
पत्तल बनाओगे।
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सबने कहा ठीक है।
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अब सभी साथ मिलकर काम
करते हुऐ एक परिवार की तरह
सब साथ रहने लगे।
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एक दिन वो संत तीर्थ यात्रा
से लौटे तो सीधा मंदिर में गए
और देखा की मंदिर से प्रतिमाऐं
गायब हैं।
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संत ने सोचा कहीं रामदास ने
प्रतिमा बेच तो नहीं दी?
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संत ने रामदास को बुलाया और
पूछा भगवान कहें गए ?
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रामदास भी अकड़कर बोला
की मुझे क्या पता रसोई में
कही काम कर रहे होंगे।
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संत बोले ये क्या बोल रहा?
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रामदास ने कहा बाबा मैं सच
बोल रहा हूँ जबसे आप गये हो ये
चारों काम में लगे हुऐ हैं।
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वो संत भागकर रसोई मेँ गये
और सिर्फ एक झलक देखी की
सीता माता जी भोजन बना रही हैं।
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राम जी पत्तल बना रहे हैं।
तभी अचानक
वह चारों गायब हो गये।
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और मंदिर में विराजमान हो गये।
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संत रामदास के पास गये और
बोले आज तुमने मुझे मेरे ठाकुर
का दर्शन कराया तु धन्य है।
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और संत ने रो रो कर रामदास
के पैर पकड़ लिये...!
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कहने का अर्थ यही है कि
ठाकुर जी तो आज भी तैयार हैं
दर्शन देने के लिये पर कोई
रामदास जैसा भक्त भी तो होना
चाहीये...
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