जब उसे इसका एहसास होता है तो वो देखता है की भगवान हाथ में एक सूटकेस लिए उसकी तरफ आ रहें हैं।
भगवान और उस मृत व्यक्ति के बीच वार्तालाप .....
भगवान: चलो बच्चे वापिस जाने का समय हो चूका है।
मृत व्यक्ति: इतनी जल्दी? मेरी तो अभी बहुत सारी योजनाये बाकी थी।
भगवान्: मुझे अफ़सोस है लेकिन अब वापिस जाने का समय हो चूका है।
मृतव्यक्ति: आपके पास उस सूटकेस में क्या है?
भगवान् : तुम्हारा सामान ।
मृतव्यक्ति: मेरा सामान ? आपका मतलब मेरी वस्तुएँ....मेरे कपड़े....मेरा धन..?
भगवान्: वो चीजें कभी भी तुम्हारी नहीं थी बल्कि इस पृथ्वी लोक की थी ।
मृतव्यक्ति: तो क्या इसमें मेरी यादें हैं?
मृतव्यक्ति: क्या इसमें मेरी योग्यताएं हैं?
भगवान् : नहीं ! उनका सम्बन्ध तो परिस्थितियों से था।
मृतव्यक्ति: तब क्या मेरे दोस्त और मेरा परिवार ?
भगवान्: नहीं प्यारे बच्चे ! उनका सम्बन्ध तो उस रास्ते से था जिस पर तुमने अपनी यात्रा की थी।
मृतव्यक्ति: तो क्या ये मेरे बच्चे और पत्नी हैं?
भगवान्: नहीं! उनका सम्बन्ध तो तुम्हारे मन से था।
मृत व्यक्ति: तब तो ये मेरा शरीर होना चाहिए ?
भगवान्: नहीं नहीं ! उसका सम्बन्ध तो पृथ्वी की धूल मिटटी से था।
मृतव्यक्ति: तब जरूर ये मेरी आत्मा होनी चाहिए!
भगवान्: तुम फिर गलत समझ रहे हो मीठे बच्चे ! तुम्हारी आत्मा का सम्बन्ध सिर्फ मुझसे है।
उस मृतव्यक्ति ने आँखों में आंसू भरकर भगवान के हाथों से सूटकेस लिया और उसे डरते डरते खोला..
खाली.....
अत्यंत निराश.........दुखी होने के कारण आंसू उसके गालो पर लुढकते हुए बहने लगे। उसने भगवान् से पुछा।
मृतव्यक्ति: क्या कभी मेरी अपनी कोई चीज थी ही नहीं?
भगवान्: बिलकुल ठीक! तुम्हारी अपनी कोई चीज नहीं थी।
मृतव्यक्ति: तब...मेरा अपना था क्या?
भगवान: तुम्हारे पल.......
प्रत्येक लम्हा.. प्रत्येक क्षण जो तुमने जिया वो तुम्हारा था।
इसलिए हर पल अच्छा काम करो।
हर क्षण अच्छा सोचो।
और हर लम्हा भगवान् का शुक्रिया अदा करो।
जीवन सिर्फ एक पल है ...
इसे जियो....
इसे प्रेम करो...
इसका आनंद लो....
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