लघु कथा -मोल भाव
अपना काम समाप्त कर ऑफिस से बाहर निकल कर शर्माजी ने स्कूटर स्टार्ट किया और घर के ओर रवाना हो ही रहे थे कि अचानक उन्हें याद आया सुबह घर से निकलते समय पत्नी ने कहा था,"आज मंगलवार है ,बाकी फल तो है,केले ख़त्म हो गए हैं,ऑफिस से आते समय १ दर्ज़न केले लेते आना.शर्माजी ने घड़ी देखी तो शाम के ६ बज़ रहे थे,आज काम भी ज्यादा था,अफसरों के साथ मीटिंग भी थी ,इस कारण घंटा भर देर हो गयी.सोचते सोचते थोड़ी दूर ही गए थे,तभी उन्होंने सड़क किनारे बैठ कर टोकरी में बड़े और ताज़ा केले बेचते एक एक बीमार से दिखने वाली पतली दुबली बुढ़िया दिख गयी,वैसे तो वह फल हमेशा स्टेशन रोड पर "राम आसरे फ्रूट भण्डार" से ही लेते थे,पर आज उन्हें लगा,अब तक राम आसरे के यहाँ ऑफिस से घर लौटते समय खरीददारी करने वालों की काफी भीड़ हो गयी होगी, १ दर्जन केलों की ही तो बात है,क्यों समय खराब करूँ ?
क्यों न बुढ़िया से ही खरीद लूँ ? उन्होंने बुढ़िया के सामने स्कूटर रोका और बुढ़िया से पूछा,"माई,केले कैसे दिए"बुढ़िया बोली,बाबूजी बीस रूपये दर्जन,शर्माजी तुरंत बोले,"माई,इतने महंगे क्यों बता रही हो,ठीक भाव लगाओ, १५ रूपये दूंगा, बुढ़िया ने उत्तर में कहा,"बाबूजी १५ में तो घर में ही नहीं पड़ते,अट्ठारह रूपये दे देना,दो पैसे मैं भी कमा लूंगी, शर्माजी तपाक से बोले,रहने दे १५ रूपये लेने हैं तो बोल नहीं तो रहने दे.बुझे चेहरे से बुढ़िया ने,"न" में गर्दन हिला दी,शर्माजी ने स्कूटर स्टार्ट किया और आगे बढ़ चले,थोड़ी दूर पर उन्हें एक ठेलेवाला नज़र आया,उन्होंने ठेले के पास ही स्कूटर खड़ा किया,और केलों का भाव पूछा.ठेलेवाला बोला बाबूजी बहुत अच्छे हैं,शहर में कहीं ऐसे केले नहीं मिलेंगे,भाव भी बहुत कम २२ रूपये के दर्जन,शर्माजी ने मुंह बिचकाया और खीजते हुए बोले,अरे १८ रूपये में तो पीछे छोड़ कर आया हूँ, ठेलेवाले ने सुना अनसुना करते हुए जवाब दिया, वहीँ से ले लेते,छोड़ कर क्यों आये ?"शर्माजी ने केलेवाले को घूरते हुए,बिना कुछ कहे स्कूटर स्टार्ट किया और आगे चल पड़े.
राम आसरे फ्रूट भण्डार पर स्कूटर खड़ा किया तो उम्मीद के अनुसार वहां लम्बी लाइन लगी थी.अपनी बारी की प्रतीक्षा करते करते शर्माजी सोचने लगे,"बेकार ही समय खराब किया इससे तो पहले ही यहाँ आजाता समय ख़राब नहीं होता अभी तो घर जाकर मंदिर भी जाना है.तब तक बहुत देर हो जायेगी.,शर्माजी का नंबर आने पर,जब उन्होंने केले का भाव पूछा तो राम आसरे बोल उठा,"शर्माजी आप कब से भाव पूछने लगे"?२४ रूपये दर्जन हैं ले जाओ,कितने दर्जन दूँ ?शर्माजी झुंझलाते हुए बोले,अरे लूट मचा रखी है क्या?रोज का ग्राहक हूँ,५ साल से सारे फल तुमसे ही खरीदता हूँ ,एक घर तो डायन भी छोड़ देती है,ठीक भाव लगाओ,राम आसरे ने कहा तो कुछ नहीं पर ऊँगली से सामने लगे बोर्ड की ओर इशारा कर दिया,बोर्ड पर लिखा था"मोल भाव करने वाले माफ़ करें"शर्माजी को राम आसरे का यह व्यवहार बहुत बुरा लगा,उन्होंने ने भी कुछ कहे बिना दुकान से विदाई ली और कुछ सोचकर स्कूटर को वापस ऑफिस की ओर मोड़ दिया.मन ही मन वह खुद ही कोसने लगे,क्यों आज तक ऊंची दुकान के चक्कर में वह राम आसरे के हाथों मूर्ख बनते रहे ?अब तक पता नहीं कितना खुद का कितना नुकसान कर दिया होगा?
सोचते सोचते वह बुढ़िया के पास पहुँच गए,उन्होंने स्कूटर खड़ा किया और गौर से देखा तो बुढ़िया की टोकरे में उतने ही केले नज़र आये जितने उन्होंने पौन घंटे पहले देखे थे.शर्माजी को सामने देख कर बुढ़िया ने उन्हें पहचान लिया,उसके बुझे चेहरे पर आशा की हलकी सी चमक दिखाई देने लगी ,उसने धीमी मगर स्पष्ट आवाज़ में पूछा,"बाबूजी १ दर्जन केले दे दूँ,पर १८ रूपये से काम नहीं ले पाऊँगी ,शर्माजी ने मुस्कराकर कहा ,"माई,एक दर्ज़न नहीं दो दर्जन दे दो और भाव की चिंता मत करो."बुढ़िया का चेहरा ख़ुशी से दमकने लगा,केलों को बिना थैली के शर्माजी के हाथ में पकड़ाते हुए बोली"बाबूजी मेरे पास थैली नहीं है,सुबह मंडी से आठ दर्जन केले लायी थी,अभी तक दो दर्जन ही बिक़े हैं,एक टाइम था जब मेरा आदमी जिन्दा था,मेरी भी छोटी सी दुकान थी,सब्ज़ी,फल सब मिलता था उस पर,आदमी की बीमारी में दुकान बिक गयी,आदमी भी नहीं रहा,अब खाने के भी लाले पड़ रहे हैं,किसी तरह पेट पाल रही हूँ,कोई औलाद भी तो नहीं है जिसकी ओर मदद के लिए देखूं,अब कमज़ोरी और उम्र के कारण ज्यादा मेहनत भी तो नहीं होती,इतना कहते कहते बुढ़िया रुआंसी हो गयी,शर्माजी भी बिना कुछ कहे हाथ में केले लिए खड़े खड़े बुढ़िया की बात सुनते रहे,बुढ़िया की बात समाप्त होने के बाद,शर्माजी ने जेब से ५० रूपये का नोट निकला और दोनों हाथों से बुढ़िया के हाथ में थमाते हुए स्कूटर की ओर मुड़े ही थे कि,उन्हें बुढ़िया की आवाज़ सुनायी दी"बाबूजी मेरे पास छुट्टे नहीं हैं आप के पास ३६ रूपये खुले हो तो दे दो.शर्माजी तुरंत वापस मुड़े और बोले"माई चिंता मत करो,रख लो,अब मैं रोज़ तुमसे ही फल खरीदूंगा,अभी तो जेब में पैसे नहीं हैं,कल तुम्हें ५०० रूपये दे दूंगा,धीरे धीरे चुका देना,और परसों से बेचने के लिए मंडी से दूसरे फल भी ले आना.बुढ़िया कुछ कह पाती उसके पहले ही शर्माजी स्कूटर से घर की ओर रवाना हो गए.
घर पहुँचते ही जब पत्नी कौशल्या ने देरी से आने का कारण पूछा तो,शर्माजी ने पूरी घटना सुनाते हुए कहा,"मुझे सदा से ही एक ग़लतफ़हमी थी अच्छा सामान बड़ी दुकान पर ही मिलता है,पर आज मेरी यह गलतफहमी दूर हो गयी,न जाने क्यों हम हमेशा मुश्किल से पेट पालने वाले,थड़ी लगा कर सामान बेचने वालों से मोल भाव करते हैं,बड़ी दुकानों पर मुंह मांगे पैसे दे आते हैं,शायद हमारी मानसिकता ही बिगड़ गयी है ,गुणवत्ता के स्थान पर हम चकाचौंध पर अधिक ध्यान देने लगे हैं.अब देखो न,केले बड़े ही नहीं ताज़ा भी हैं और बाजार भाव से सस्ते भी.पत्नी कौशल्या की भी आँखें खुल गयी,वह भी कहने लगी,"यह बात तो मैंने भी कभी नहीं सोची,आप ठीक कह रहे हो आज से मैं भी इस बात का ध्यान रखूंगी.
अगले दिन शर्माजी ने बुढ़िया से किया अपना वादा निभाया,उसे ५०० रूपये देते हुए कहा,"माई लौटाने की चिंता मत करना,धीरे धीरे जो फल खरीदूंगा,उनकी कीमत से ही चुक जाएंगे.जब शर्माजी के ऑफिस के साथियों को किस्सा बताया तो उसके बाद से सबने बुढ़िया से ही फल खरीदना प्रारम्भ कर दिया.तीन महीने बाद ऑफिस के लोगों ने स्टाफ क्लब की ओर से बुढ़िया को एक हाथ ठेला भेंट कर दिया बुढ़िया भी अब प्रसन्न है,उचित खान पान के कारण उसका स्वास्थ्य भी पहले से बहुत अच्छा है.हर दिन शर्माजी और ऑफिस के दूसरे लोगों को दुआ देती है.शर्माजी के मन में भी अपनी बदली सोच और एक असहाय निर्बल महिला की सहायता करने के कारण संतुष्टि का भाव रहता है.अब जो भी मिलता है उसे अपने साथ घटित घटना को बताना नहीं भूलते साथ ही उन्हें इस सन्देश को और लोगों तक पहुंचाने के लिए भी कहते हैं.
मित्रों आप भी आज या आगे कभी फल, सब्जी इत्यादि खरीदेंगे इस बात का ध्यान में अवश्य रखियेगा।
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