नर्मदा सरितां वरा -नर्मदा नदियों में सर्वश्रेष्ट हैं !
नर्मदा तट पर दाह संस्कार के बाद, गंगा तट पर इसलिए नहीं जाते हैं कि, नर्मदा जी से मिलने गंगा जी स्वयं आती है |
नर्मदा नदी पर ही नर्मदा पुराण है ! अन्य नदियों का पुराण नहीं हैं !
नर्मदा अपने उदगम स्थान अमरकंटक में प्रकट होकर, नीचे से ऊपर की और प्रवाहित होती हैं, जबकि जल का स्वभाविक हैं ऊपर से नीचे बहना !
नर्मदा अपने उदगम स्थान से लेकर समुद्र पर्यन्त उतर एवं दक्षिण दोनों तटों में,दोनों और सात मील तक प्रथ्बी के अंदर ही अंदर प्रवाहित होती हैं , प्रथ्वी के उपर तो वे मात्र दर्शनार्थ प्रवाहित होती हैं | (उलेखनीय है कि भूकंप मापक यंत्रों ने भी प्रथ्बी कीइस दरार को स्वीकृत किया हैं )
नर्मदा तट में जीवाश्म प्राप्त होते हैं | (अनेक क्षेत्रों के वृक्ष आज भी पाषण रूप में परिवर्तित देखे जा सकते हैं |)
नर्मदा से प्राप्त शिवलिग ही देश के समस्त शिव मंदिरों में स्थापित हैं क्योकि ,शिवलिग केवल नर्मदा में ही प्राप्त होते हैं अन्यत्र नहीं |
नर्मदा में ही बाण लिंग शिव एवं नर्मदेश्वर (शिव ) प्राप्त होते है अन्यत्र नहीं |
नर्मदा के किनारे ही नागमणि वाले मणि नागेश्वर सर्प रहते हैं अन्यत्र नहीं |
नर्मदा का हर कंकड़ शंकर होता है ,उसकी प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होती क्योकि , वह स्वयं ही प्रतिष्टित रहता है |
नर्मदा में वर्ष में एक बार गंगा आदि समस्त नदियाँ स्वयं ही नर्मदा जी से मिलने आती हैं |
नर्मदा राज राजेश्वरी हैं वे कहीं नहीं जाती हैं |
नर्मदा में समस्त तीर्थ वर्ष में एक बार नर्मदा के दर्शनार्थ स्वयं आते हैं |
नर्मदा के किनारे तटों पर ,वे समस्त तीर्थ अद्रश्य रूप में स्थापित है जिनका वर्णन किसी भी पुराण, धर्मशास्त्र या कथाओं में आया हैं |
नर्मदा का प्रादुर्भाव स्रष्टि के प्रारम्भ में सोमप नामक पितरों ने श्राद्ध के लिए किया था |
नर्मदा में ही श्राद्ध की उत्पति एवं पितरो द्वारा ब्रम्हांड का प्रथम श्राद्ध हुआ था अतः नर्मदा श्राद्ध जननी हैं |
नर्मदा पुराण के अनुसार नर्मदा ही एक मात्र ऐसी देवी (नदी )हैं ,जो सदा हास्य मुद्रा में रहती है |
नर्मदा तट पर ही सिद्दी प्राप्त होती है| ब्रम्हांड के समस्त देव, ऋषि, मुनि, मानव (भले ही उनकी तपस्या का क्षेत्र कही भी रहा हो) सिद्दी प्राप्त करने के लिए नर्मदा तट पर अवश्य आये है| नर्मदा तट पर सिद्धि पाकर ही वे विश्व प्रसिद्ध हुए|
नर्मदा (प्रवाहित ) जल में नियमित स्नान करने से असाध्य चर्मरोग मिट जाता है |
नर्मदा (प्रवाहित ) जल में तीन वर्षों तक ,प्रत्येक रविवार को नियमित स्नान करने से श्वेत कुष्ठ रोग मिट जाता हैं किन्तु ,कोई भी रविवार खंडित नहीं होना चाहिए |
नर्मदा स्नान से समस्त क्रूर ग्रहों की शांति हो जाती है | नर्मदा तट पर ग्रहों की शांति हेतु किया गया जप पूजन हवन,तत्काल फलदायी होता है |
नर्मदा अपने भक्तों को जीवन काल में दर्शन अवश्य देती हैं ,भले ही उस रूप में हम माता को पहिचान न सके|
नर्मदा की कृपा से मानव अपने कार्य क्षेत्र में ,एक बार उन्नति के शिखर पर अवश्य जाता है |
नर्मदा कभी भी मर्यादा भंग नहीं करती है ,वे वर्षा काल में पूर्व दिशा से प्रवाहित होकर , पश्चिम दिशा के ओर ही जाती हैं अन्य नदियाँ ,वर्षा काल में अपने तट बंध तोडकर ,अन्य दिशा में भी प्रवाहित होने लगती हैं |
नर्मदा पर्वतो का मान मर्दन करती हुई पर्वतीय क्षेत्रमें प्रवाहित होकर जन ,धन हानि नहीं करती हैं (मानव निर्मित बांधों को छोडकर )अन्य नदियाँ मैदानी , रितीले भूभाग में प्रवाहित होकर बाढ़ रूपी विनाशकारी तांडव करती हैं |
नर्मदा ने प्रकट होते ही अपने अद्भुत आलौकिक सौन्दार्य से समस्त सुरों ,देवो को चमत्कृत करके खूब छकाया था | नर्मदा की चमत्कारी लीला को देखकर शिव पर्वती हसते -हसते हाफ्ने लगे थे |
नेत्रों से अविरल आनंदाश्रु प्रवाहित हो रहे थे| उन्होंने नर्मदा का वरदान पूर्वक नामकरण करते हुए कहा - देवी तुमने हमारे ह्रदय को अत्यंत हर्षित कर दिया, अब पृथ्वी पर इसी प्रकार नर्म (हास्य ,हर्ष ) दा(देती रहो ) अतः आज से तुम्हारा नाम नर्मदा होगा |
No comments:
Post a Comment