साड़ी और जींस वार्तालाप.....
एक दिन जींस और साड़ी में हो गई तकरार
कहा साड़ी ने ठसक से -
मैं हूँ मर्यादा,परम्परा,संस्कृति-संस्कार
सौ प्रतिशत देशी
तू क्यों घुस आई मेरे देश में विदेशी
सौ प्रतिशत देशी
तू क्यों घुस आई मेरे देश में विदेशी
वैदिक काल से मैं स्त्री की पहचान थी
आन-बान-शान थी
घूँघट आँचल और सम्मान थी
आन-बान-शान थी
घूँघट आँचल और सम्मान थी
बेटियाँ बचपन में मुझे लपेट
माँ की नकल करती थींदसवीं के फेयरवेल तक
पिता को चिंतित कर देती थीं
उनकी पुतरी-कनिया भी
मुझे ही पहनती थीं
मुझे ही पहनती थीं
भारत माँ हों या हमारी देवियाँ
देखा है कभी किसी ने
मेरे सिवा पहनते हुए कुछ
देखा है कभी किसी ने
मेरे सिवा पहनते हुए कुछ
जब से तू आई है बिगड़ गया है
सारा माहौल
हर जगह उड़ रहा है
मेरा मखौल
सारा माहौल
हर जगह उड़ रहा है
मेरा मखौल
बेटियाँ तो बेटियाँ
गुड़िया तक जींस पहनने लगी है
गाँव-शहर की बड़ी-बूढ़ी भी
तुम्हारे लिए तरसने लगी हैं
गुड़िया तक जींस पहनने लगी है
गाँव-शहर की बड़ी-बूढ़ी भी
तुम्हारे लिए तरसने लगी हैं
ना तो तू रंग-बिरंगी है
ना रेशमी-मखमली
फिर भी जाने क्यों लगती है सबको भली
ना रेशमी-मखमली
फिर भी जाने क्यों लगती है सबको भली
नए-नए फतवे हैं तुम्हारे खिलाफ
नाराज हैं तुमसे हमारे खाप
नाराज हैं तुमसे हमारे खाप
फिर भी तू बेहया-सी यहीं पड़ी है
मेरी प्रतिस्पर्धा में खड़ी है |
मुस्कुराई जींस -
बहन साड़ी मत हो मुझ पर नाराज
मैंने कहाँ छीना तुम्हारा राज
मेरी प्रतिस्पर्धा में खड़ी है |
मुस्कुराई जींस -
बहन साड़ी मत हो मुझ पर नाराज
मैंने कहाँ छीना तुम्हारा राज
हो कोई भी पूजा-उत्सव
पहनी जाती हो तुम ही
पहनी जाती हो तुम ही
सुना है कभी जींस में हुआ
किसी लड़की का ब्याह
फिर किस बात की तुमको आह
किसी लड़की का ब्याह
फिर किस बात की तुमको आह
मैं तो हूँ बेरंग-बेनूर
साधारण-सी मजदूर
साधारण-सी मजदूर
ना शिकन का डर,ना फटने का
मिलता है मुझसे आराम
दो जोड़ी में भी चल सकता है
वर्ष-भर का काम
मिलता है मुझसे आराम
दो जोड़ी में भी चल सकता है
वर्ष-भर का काम
तुम फट जाओ तो लोग फेंक देते हैं
मैं फट जाऊँ तो फैशन समझ लेते हैं
मैं फट जाऊँ तो फैशन समझ लेते हैं
अमीर-गरीब, स्त्री-पुरुष का भेद मिटाती हूँ
कीमती समय भी बचाती हूँ
युवा-पीढ़ी को अधिक कामकाजी
सहज और जनतांत्रिक बनाती हूँ
कीमती समय भी बचाती हूँ
युवा-पीढ़ी को अधिक कामकाजी
सहज और जनतांत्रिक बनाती हूँ
सोचो जरा द्रौपदी ने भी जींस पहनी होती
क्या दुःशासन की इतनी हिम्मत होती
क्या दुःशासन की इतनी हिम्मत होती
फिर भी जाने क्यों पंडित-मौलवी और खाप
रहते हैं मेरे खिलाफ
रहते हैं मेरे खिलाफ
दीखता है उन्हें मुझमें अंहकार
और तुझमें संस्कार
और तुझमें संस्कार
जबकि सिर्फ अलग हैं हमारे नाम
करते हैं दोनों एक ही काम
करते हैं दोनों एक ही काम
सुनो बहन
देशी-विदेशी, अपने-पराये की बात आज बेकार है
'बसुधैव-कुटुंबकम्' प्रगति का आधार है
देशी-विदेशी, अपने-पराये की बात आज बेकार है
'बसुधैव-कुटुंबकम्' प्रगति का आधार है
No comments:
Post a Comment