हमारे भीतर वह छिपा है बीज, जो फूट सकता है, लेकिन हमने कभी उस पर ध्यान नहीं दिया! हम संबंध वाले प्रेम पर ही जीवन भर संघर्ष करते रहे हैं। हमने कभी ध्यान नहीं दिया उसके-- उसके पार भी कोई प्रेम की संभावना है, कोई रूप है। हम हमेशा रेत से तेल निकालने की कोशिश करते रहे हैं। रेत से तो तेल नहीं निकला, निकल नहीं सकता था, लेकिन रेत से तेल निकालने में हम भूल ही गये कि ऐसे बीज भी थे, जिनसे तेल निकल सकता था। हम सब संबंध वाले प्रेम से जीवन को निकालने की कोशिश कर रहे हैं! वहां से नहीं निकला है, नहीं निकलेगा, लेकिन समय खोता है, शक्ति खोती है। और जहां से निकल सकता था, उस तरफ ध्यान भी नहीं जाता है! प्रेम चित्त की एक दशा की तरह पैदा होता है। बस वैसा ही पैदा होता है।
जब भी होता है, वैसा ही पैदा होता है। उसे कैसे पैदा करें, वह कैसे जन्म ले ले, वह बीज कैसे टूट जाये और अंकुरित हो जाये? स्मरण रख लेने चाहिए जब अकेले में हों तब--तब भीतर खोज करें, क्या मैं प्रेमपूर्ण हो सकता हूं? जब कोई न हो, तब खोज करें, क्या मैं प्रेमपूर्ण हो सकता हूं? क्या अकेले में लविंग--क्या अकेले में, एकांत में भी आंखें ऐसी हो सकती हैं, जैसे प्रेम-पात्र मौजूद हो? क्या अकेले में, शून्य में, एकांत में, खाली में भी मेरे प्राणों से प्रेम की धाराएं उस रिक्त स्थान को भर सकती हैं, जहां कोई नहीं, कोई पात्र नहीं, कोई आब्जेक्ट नहीं? क्या वहां भी प्रेम मुझसे बह सकता है?
जब भी होता है, वैसा ही पैदा होता है। उसे कैसे पैदा करें, वह कैसे जन्म ले ले, वह बीज कैसे टूट जाये और अंकुरित हो जाये? स्मरण रख लेने चाहिए जब अकेले में हों तब--तब भीतर खोज करें, क्या मैं प्रेमपूर्ण हो सकता हूं? जब कोई न हो, तब खोज करें, क्या मैं प्रेमपूर्ण हो सकता हूं? क्या अकेले में लविंग--क्या अकेले में, एकांत में भी आंखें ऐसी हो सकती हैं, जैसे प्रेम-पात्र मौजूद हो? क्या अकेले में, शून्य में, एकांत में, खाली में भी मेरे प्राणों से प्रेम की धाराएं उस रिक्त स्थान को भर सकती हैं, जहां कोई नहीं, कोई पात्र नहीं, कोई आब्जेक्ट नहीं? क्या वहां भी प्रेम मुझसे बह सकता है?
इसको ही प्रार्थना कहते है। उसको प्रार्थना नहीं कहते कि हाथ जोड़े मंदिरों में बैठे हैं! एकांत में जो प्रेम को बहाने में सफल हो रहा है, कोशिश कर रहा है, वह प्रार्थना में है, वह प्रेयरफुल मूड में है। तो अकेले में बैठकर देखें कि क्या मैं प्रेमपूर्ण हो सकता हूं? लोगों के साथ प्रेमपूर्ण होकर बहुत देख लिया होगा आपने। अब अकेले में थोड़ी खोज करें, क्या मैं प्रेमपूर्ण हो सकता हूं?
सूत्र- एकांत में प्रेमपूर्ण होने का प्रयोग करें, खोजें, टटोलें अपने भीतर। हो जायेगा, होता है, हो सकता है। जरा भी कठिनाई नहीं है। कभी प्रयोग ही नहीं किया उस दिशा में, इसलिए ख्याल में बात नहीं आ पायी है। निर्जन में भी फूल खिलते हैं और सुगंध फैला देते हैं। निर्जन में, एकांत में प्रेम की सुगंध को पकड़ें। जब एक बार एकांत में प्रेम की सुगंध पकड़ जायेगी तो आपको खयाल आ जायेगा कि प्रेम कोई रिलेशनशिप नहीं, कोई संबंध नहीं।
प्रेम स्टेट आफ माइंड है, स्टेट आफ कांशसनेस है, चेतना की एक अवस्था है।
सुप्रभात
गुरु पर्व पर मालिक हमे प्रेम से भर दें।
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