सूफी फकीर कहते हैं कि दया तुम्हें परमात्मा तक नहीं पहुंचायेगी। दया नैतिक है, प्रेम धर्म है। इसलिये तुम गरीबों की सेवा करो, भूमिहीनों को भूमि दिलवाओ, बीमारों का हाथ-पैर दाबो। अगर यह कर्तव्य है तो तुम चूक गये।
ईसाइयत दया के कारण चूकती चली गई है। क्योंकि जीसस ने 'सर्विस' पर, सेवा पर बड़ा जोर दिया। लेकिन जीसस की सेवा प्रेम का पर्यायवाची थी। ईसाई मिशनरी सेवा कर रहा है, क्योंकि सेवा सीढ़ी है परमात्मा तक जाने की। गरीब चाहिए, बे-पढ़े-लिखे लोग चाहिए, आदिवासी चाहिए, भूखे-नंगे लोग चाहिए; उनकी सेवा करो। क्योंकि सेवा ही रास्ता है, उससे ही तुम पहुंच सकोगे। जिस दिन दुनिया में सभी सुखी होंगे और सेवा करने को कोई न बचेगा, उस दिन ईसाई मिशनरी के लिए स्वर्ग जाने का रास्ता बंद। तो बहुत गहरे में ईसाई मिशनरी चाहेगा नहीं कि दुनिया सुखी हो जाये।
एक हिंदू विचारक हैं करपात्री; उन्होंने एक किताब लिखी है रामराज्य और समाजवाद पर। समाजवाद के खिलाफ उन्होंने बड़ी से बड़ी दलील दी है, वह यह है कि अगर समाजवाद में सभी लोग समान हो गये तो दान असंभव हो जायेगा। और दान के बिना तो मोक्ष नहीं है। हिंदू धर्म कहता है कि दान के बिना मोक्ष नहीं। तो करपात्री कहते हैं, गरीब का रहना तो जरूरी है। दान कौन लेगा? दान देगा कौन? और जब हिंदू शास्त्र कहते हैं, दान के बिना मोक्ष नहीं तो अगर दान की व्यवस्था ही कट गई, समाजवाद हो गया तो मोक्ष खो जायेगा। तो करपात्री के मोक्ष के लिए गरीब का होना जरूरी है। गरीब एक सीढ़ी है, जिसके सिर पर पैर रखकर मोक्ष तक जाना है। यह सेवा किस तरह की सेवा है? यह दान किस तरह का दान है? इसमें प्रेम जरा भी नहीं है।
और अगर ऐसी सेवा से मोक्ष मिलता हो तो सूफी कहते हैं, ऐसा मोक्ष झूठा होगा। प्रेम से मिलता है मोक्ष। प्रेम हर हालत में किया जा सकता है। दया हर हालत में नहीं की जा सकती है। दया के लिए दूसरे का विपन्न होना जरूरी है। प्रेम सुखी से भी किया जा सकता है, दया केवल दुखी से की जा सकती है। इसे थोड़ा समझ लें।
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