जय माँ सदा सहाय
म.प्र. में दतिया जिले में सिथत मा पीताम्बरा का शक्तिपीठ भारत में अद्वितीय है और इसकी समानता कामाख्या मंदिर से ही की जा सकती है। इस शकित पीठ में मा बगलामुखी देवी का विशाल रूप स्थापित है जिसके संबंध में ऐसी जन मान्यता है कि मा बगलामुखी के परिसर में प्रवेश करने से श्रद्धालु भक्त के संकट स्वमेव दूर हो जाते हैं एवं मंदिर परिसर में धर्म प्रेमियों के रूकने की व्यवस्थाएं हैं इसके अलावा झांसी रेलवे स्टेशन से दतिया की दूरी मात्र 28 कि.मी. है और वायुयान से ग्वालियर समीपस्थ हवार्इ अडडा है।
धार्मिक अनुष्ठान और कार्यसिद्धी योग की पूर्ति हेतु देश और प्रदेश के उधोगपति और राजनेता निरन्तर दतिया सिथत इस शक्तिपीठ में आते हैं।
भारत के लोकप्रिय शक्तिपीठों में से एक है, जो मध्य प्रदेश में स्थित है। मुकदमे आदि के मामले में पीताम्बरा देवी का अनुष्ठान सफलता प्राप्त करने वाला माना जाता है। मध्य प्रदेश राज्य ज़िला दतिया निर्माण काल 1935 प्रसिद्धि शक्तिपीठ संबंधित लेख मध्य प्रदेश , दतिया , शक्तिपीठ विशेष पीताम्बरा पीठ के प्रांगण में ही 'माँ धूमावती देवी' का मन्दिर है, जो भारत में भगवती धूमावती का एक मात्र मन्दिर है।
धार्मिक अनुष्ठान और कार्यसिद्धी योग की पूर्ति हेतु देश और प्रदेश के उधोगपति और राजनेता निरन्तर दतिया सिथत इस शक्तिपीठ में आते हैं।
भारत के लोकप्रिय शक्तिपीठों में से एक है, जो मध्य प्रदेश में स्थित है। मुकदमे आदि के मामले में पीताम्बरा देवी का अनुष्ठान सफलता प्राप्त करने वाला माना जाता है। मध्य प्रदेश राज्य ज़िला दतिया निर्माण काल 1935 प्रसिद्धि शक्तिपीठ संबंधित लेख मध्य प्रदेश , दतिया , शक्तिपीठ विशेष पीताम्बरा पीठ के प्रांगण में ही 'माँ धूमावती देवी' का मन्दिर है, जो भारत में भगवती धूमावती का एक मात्र मन्दिर है।
पीताम्बरा पीठ की स्थापना एक सिद्ध संत, जिन्हें लोग स्वामीजी महाराज कहकर पुकारते थे, ने 1935 में की थी। श्री स्वामी महाराज ने बचपन से ही संन्यास ग्रहण कर लिया था। पीताम्बरा पीठ दतिया ज़िला , मध्य प्रदेश में स्थित है। यह देश के लोकप्रिय शक्तिपीठों में से एक है। कहा जाता है कि कभी इस स्थान पर श्मशान हुआ करता था, लेकिन आज एक विश्वप्रसिद्ध मन्दिर है स्थानील लोगों की मान्यता है कि मुकदमे आदि के सिलसिले में माँ पीताम्बरा का अनुष्ठान सफलता दिलाने वाला होता है।
पीताम्बरा पीठ के प्रांगण में ही 'माँ धूमावती देवी' का मन्दिर है, जो भारत में भगवती धूमावती का एक मात्र मन्दिर है।
पीताम्बरा देवी की मूर्ति में मुदगर, पाश, वज्र एवं शत्रुजिव्हा है। यह शत्रुओंकी जीभको कीलित करदेती हैं। मुकदमे आदि में इनका अनुष्ठान सफलता प्राप्त करने वाला माना जाता है।इनकी आराधना करने से साधक को विजय प्राप्त होती है। शुत्रपूरी तरह पराजित हो जाते हैं। यहाँ के पंडित तो यहाँ तक कहते हैं कि,जो राज्य आतंकवाद व नक्सलवाद से प्रभावित हैं, वह माँ पीताम्बरा की साधना व अनुष्ठान कराएँ, तो उन्हें इस समस्या से निजात मिल सकती है।धूमावती मन्दिर पीताम्बरा पीठ के प्रांगण में ही माँ भगवती धूमावती देवी का देशका एक मात्र मन्दिर है। ऐसा कहा जाता है कि मन्दिर परिसर में माँ धूमावती की स्थापना न करने के लिए अनेक विद्वानों ने स्वामीजी महाराज को मना किया था। तब स्वामी जी ने कहा कि- "माँ का भयंकर रूपतो दुष्टों के लिए है, भक्तों के प्रति ये अति दयालु हैं।" समूचे विश्व में धूमावती माता का यह एक मात्र मन्दिर है। जब माँ पीताम्बरा पीठ में माँ धूमावती की स्थापना हुई थी, उसी दिन स्वामी महाराज ने अपने ब्रह्मलीन होने की तैयारी शुरू कर दी थी।ठीक एक वर्ष बाद माँ धूमावती जयन्ती के दिन स्वामी महाराज ब्रह्मलीन हो गए। माँ धूमावती की आरती सुबह-शाम होती है,लेकिन भक्तों के लिए धूमावती का मन्दिर शनिवार को सुबह-शाम 2 घंटे केलिए खुलता है। माँ धूमावती को नमकीन पकवान, जैसे- मंगोडे,कचौड़ी व समोसे आदि का भोग लगाया जाता है।
ऐतिहासिक सत्य --- माँ पीताम्बरा बगलामुखी का स्वरूपरक्षात्मक है।पीताम्बरा पीठ मन्दिर के साथ एक ऐतिहासिक सत्य भी जुड़ा हुआ है। सन् 1962 में चीन ने भारत पर हमला कर दिया था।उस समय देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू थे। भारत के मित्र देशों रूस तथा मिस्र ने भी सहयोग देने से मना कर दिया था।तभी किसी योगी ने पंडित जवाहर लाल नेहरू से स्वामी महाराज से मिलने को कहा। उस समय नेहरू दतिया आए और स्वामीजी से मिले।स्वामी महाराज ने राष्ट्रहित में एक यज्ञ करने की बात कही। यज्ञ में सिद्ध पंडितों, तांत्रिकों व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को यज्ञ का यजमान बनाकर यज्ञ प्रारंभ किया गया।यज्ञ के नौंवे दिन जब यज्ञका समापन होने वाला था तथा पूर्णाहुति डाली जा रही थी,उसी समय'संयुक्त राष्ट्र संघ' का नेहरूजी को संदेश मिला कि चीन ने आक्रमण रोक दिया है। मन्दिर प्रांगण में वह यज्ञशाला आज भी बनी हुई है।
पीताम्बरा पीठ बस स्टैण्ड से 1 कि0मी0 और रेलवे स्टेशन से 3 कि0मी0 की दूरी पर है। दतिया एक प्रचाीन शहर है जिसका महाभारत में दैत्यावक्रा के नाम से उल्लेख है। यहाॅ के सात मंजिला महल भी प्रसिद्व है जो कि राजा वीरसिंह ने1614 में बनवाया था। दतिया धर्मिक स्थल हैजहाॅ पीताम्बरा पीठदेवी का सिद्वपीठ है। पीताम्बरा पीठ देश के सबसे लोकप्रियशक्ति पीठों में से एक है। श्री श्री 108स्वामी गोलकवासी स्वामीजी महाराज ने सन् 1935 में इस स्थान परबगलामुखी देवी औरधूमावती माई की प्रतिमा स्थापित करवाईथी। वर्तमान में जहाॅ माॅ पीताम्बरा पीठ का मंदिर है,वहाॅ कभी शमशान हुआ करता था।इसी शमशान के पास प्राचीनकाल का एकशिव मंदिर था जिसे वनखण्डेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता था।पुरातत्व विभाग के अनुसार श्री वनखण्डेश्वर महादेवजी का मंदिर पाॅच हजार वर्ष से भी ज्यादा प्राचीन है। ऐसा कहा जाता हैकि महाभारत कालीन समय के गुरू द्रोणाचार्य के पुत्रअश्वसथामा के कहने परमाॅ पीताम्बरा पीठकी स्थापना स्वामी जी ने अपने तप, बल से की। यह मंदिर भगवान शिवको समर्पित है। इसके अलावा इस मंदिर परिसर में अन्य बहुत सेमंदिर भी बने हुए है। देश के विभिन्न हिस्सों सेश्रद्वालुओं का यहाॅ आना जाना लगा रहता है।माॅ पीताम्बरा बंगलामुखी का स्वरूपरक्षात्मक एंव स्तम्भनात्मक है।
पीताम्बरा देवी की मूर्ति में मुदगर, पाश, वज्र एवं शत्रुजिव्हा है। यह शत्रुओंकी जीभको कीलित करदेती हैं। मुकदमे आदि में इनका अनुष्ठान सफलता प्राप्त करने वाला माना जाता है।इनकी आराधना करने से साधक को विजय प्राप्त होती है। शुत्रपूरी तरह पराजित हो जाते हैं। यहाँ के पंडित तो यहाँ तक कहते हैं कि,जो राज्य आतंकवाद व नक्सलवाद से प्रभावित हैं, वह माँ पीताम्बरा की साधना व अनुष्ठान कराएँ, तो उन्हें इस समस्या से निजात मिल सकती है।धूमावती मन्दिर पीताम्बरा पीठ के प्रांगण में ही माँ भगवती धूमावती देवी का देशका एक मात्र मन्दिर है। ऐसा कहा जाता है कि मन्दिर परिसर में माँ धूमावती की स्थापना न करने के लिए अनेक विद्वानों ने स्वामीजी महाराज को मना किया था। तब स्वामी जी ने कहा कि- "माँ का भयंकर रूपतो दुष्टों के लिए है, भक्तों के प्रति ये अति दयालु हैं।" समूचे विश्व में धूमावती माता का यह एक मात्र मन्दिर है। जब माँ पीताम्बरा पीठ में माँ धूमावती की स्थापना हुई थी, उसी दिन स्वामी महाराज ने अपने ब्रह्मलीन होने की तैयारी शुरू कर दी थी।ठीक एक वर्ष बाद माँ धूमावती जयन्ती के दिन स्वामी महाराज ब्रह्मलीन हो गए। माँ धूमावती की आरती सुबह-शाम होती है,लेकिन भक्तों के लिए धूमावती का मन्दिर शनिवार को सुबह-शाम 2 घंटे केलिए खुलता है। माँ धूमावती को नमकीन पकवान, जैसे- मंगोडे,कचौड़ी व समोसे आदि का भोग लगाया जाता है।
ऐतिहासिक सत्य --- माँ पीताम्बरा बगलामुखी का स्वरूपरक्षात्मक है।पीताम्बरा पीठ मन्दिर के साथ एक ऐतिहासिक सत्य भी जुड़ा हुआ है। सन् 1962 में चीन ने भारत पर हमला कर दिया था।उस समय देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू थे। भारत के मित्र देशों रूस तथा मिस्र ने भी सहयोग देने से मना कर दिया था।तभी किसी योगी ने पंडित जवाहर लाल नेहरू से स्वामी महाराज से मिलने को कहा। उस समय नेहरू दतिया आए और स्वामीजी से मिले।स्वामी महाराज ने राष्ट्रहित में एक यज्ञ करने की बात कही। यज्ञ में सिद्ध पंडितों, तांत्रिकों व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को यज्ञ का यजमान बनाकर यज्ञ प्रारंभ किया गया।यज्ञ के नौंवे दिन जब यज्ञका समापन होने वाला था तथा पूर्णाहुति डाली जा रही थी,उसी समय'संयुक्त राष्ट्र संघ' का नेहरूजी को संदेश मिला कि चीन ने आक्रमण रोक दिया है। मन्दिर प्रांगण में वह यज्ञशाला आज भी बनी हुई है।
पीताम्बरा पीठ बस स्टैण्ड से 1 कि0मी0 और रेलवे स्टेशन से 3 कि0मी0 की दूरी पर है। दतिया एक प्रचाीन शहर है जिसका महाभारत में दैत्यावक्रा के नाम से उल्लेख है। यहाॅ के सात मंजिला महल भी प्रसिद्व है जो कि राजा वीरसिंह ने1614 में बनवाया था। दतिया धर्मिक स्थल हैजहाॅ पीताम्बरा पीठदेवी का सिद्वपीठ है। पीताम्बरा पीठ देश के सबसे लोकप्रियशक्ति पीठों में से एक है। श्री श्री 108स्वामी गोलकवासी स्वामीजी महाराज ने सन् 1935 में इस स्थान परबगलामुखी देवी औरधूमावती माई की प्रतिमा स्थापित करवाईथी। वर्तमान में जहाॅ माॅ पीताम्बरा पीठ का मंदिर है,वहाॅ कभी शमशान हुआ करता था।इसी शमशान के पास प्राचीनकाल का एकशिव मंदिर था जिसे वनखण्डेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता था।पुरातत्व विभाग के अनुसार श्री वनखण्डेश्वर महादेवजी का मंदिर पाॅच हजार वर्ष से भी ज्यादा प्राचीन है। ऐसा कहा जाता हैकि महाभारत कालीन समय के गुरू द्रोणाचार्य के पुत्रअश्वसथामा के कहने परमाॅ पीताम्बरा पीठकी स्थापना स्वामी जी ने अपने तप, बल से की। यह मंदिर भगवान शिवको समर्पित है। इसके अलावा इस मंदिर परिसर में अन्य बहुत सेमंदिर भी बने हुए है। देश के विभिन्न हिस्सों सेश्रद्वालुओं का यहाॅ आना जाना लगा रहता है।माॅ पीताम्बरा बंगलामुखी का स्वरूपरक्षात्मक एंव स्तम्भनात्मक है।
No comments:
Post a Comment