एक युवक आत्म हत्या के लिए जा रहा था ,शायद जीवन से उसका मोह भगं हो चुका था जैसे कि हमारे तथा कथित धार्मिक लोग है जो मोक्ष और मूक्ति के चक्कर मे जीवन से मूहं मोढे बैठे है ,दरिया मे कुदने ही वाला था कि एक सन्यासी ने उसका हाथ पकड लिया ,शायद वो साक्षात ईश्वर ही होगा उसके लिए। उसने कहा आप मुझे मर जाने दे मै अब नही जीना चाहता जीवन ने मेरे साथ बहूत अन्याय किया है मेरा भगवान से इन्सानियत से भरोसा उठ गया है , कुछ भी तो नही दिया मुझे ईश्वर ने अनाथालय मे पला हू , वहा शोषन हुआ है तो भाग आया हूं , न मे पडना लिखना जानता हूं , न जेब मे फूटी कोढी है भीख भी कोइ नही देने को राजी । सब तरफ अन्धेरा है क्या करूगां जी कर , मरना सबसे उतम है मेरी स्थिति मे ।
सन्यासी बोला बस इतनी सी बात इसके लिए इतना अनमोल जीवन का बहिष्कार कर रहे हो तुम मुझे दरिद्र मालूम पडते हो , वो बोला तुम भी मजाक उड़ा रहे हो गरीब का तो सब उपहास करते है तुम भी कर लो । वो सन्यासी बोला मेरे प्रभू कोइ गरीब अमीर नही इस ससांर मे केवल दरिद्र ओर सतुष्ट दो ही तरह के लोग है , तीसरे वह है जो दरिद्र से सतुष्ट के बीच है । वो है जिज्ञासु , दरिद्र सबसे अधिक है सतुष्ट व जिज्ञासु उगलीयो पर गिने चुने है, इस लिए अगर आप दो ही तरह के कह सकते हो । युवक बोला मै समझा नही शायद तुम्हे अध्यात्म ने पागल कर दिया है तुम्हे गरीबी अमीरी का नही पता और बाते करते हो इधर उधर की , उपहास करते हो गरीबो का । सन्यासी बोला निधॅन मे भी खुबसुरती है जिसे तुम गरीब कहते हो , कोइ गुनाह नही यह एक स्थिति है जिसमे हो सकता है आप 2000 रूपय प्रतिमाह कमाते हो तो क्या फरक पडता है ,भीतर सतुष्टी चाहिए वही आपका आभा मडंल है , वो उसमे से भी गुजर बसर करके कुछ फकीर के लिए चाहे सुखी रोटी ही क्यु सहषॅ भेटं कर देता है , रात चैन की नीद जमीन पर सो सकता है ,उसका जीवन भी खुबसूरत और प्रेम पूणॅ हो सकता है , और दुसरी तरफ एक धनपति को ले लो जिसे तुम अमीर कहते हो , वो भू दरिद्र हो सकता है , दरिद्र वो है जिसे ईश्वर का दान दिखाइ नही पडता ,वो और के चक्कर मे है , कितना है वो देखने की आँख नही ,बस अन्धो की तरह मागनें पर उसका जोर है ,हर वक्त निराष रहेगा , चाहे 100000 रूपय महीना क्यु न कमा ले ,धन्यवाद का कोइ स्वर नही है उसके पास ,सन्यासी बोला वो दरिद्र है ,धनवान भी सतुष्ट हो सकता है निधॅन भी । दरिद्र भी हो सकते है दोनो जैसे तुम दरिद्र हो ।
युवक बोला यह किताबी बाते रहने दे । तो सन्यासी बोला चलो बताओ तुम्हे कितना धन चाहिए बड़े बडे धनवान मेरे सेवक है , युवक चोकं गया और लालच ने उसे घेर लिया वो मन ही मन सोचने लगा कि क्यु न इस मुखॅ का फायदा उठा लिया जाए, वो बोल उठा दो लाख दिलवा दो । वो उसे लेकर एक धनवान के पास पहूचा और सारी बात उसे बता दी ,फिर कुछ इशारो मे बात करने के बाद सन्यासी ने युवक से कहा कि ये दो लाख देने को तैयार है तुम अपनी दो आखे दे दो ,युवक ने इन्कार कर दिया , फिर सन्यासी ने कहा चलो दो हाथ ही दे दो ,वो फिर सहम कर इन्कार कर गाया , इसी तरह दो पैर , दो कान , यहा तक की वो अपनी दो उगली तक देने से इनकार कर गया और सन्यासी के चरनो मे गिर पडा ,उसे ईश्वर के दान के दशॅन हो चूके थे , उसकी मागं उसी वक्त खत्म हो चुकी थी ,एक और सन्यासी उसमे जन्म ले चुका था ।
दरिद्रता शब्द भीतर की अवस्था का अवलोकन कराता है । कुदरत की धूप मे कुछ गल्त नही ये हमारे लाभ हेतु ही है.
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