2016-09-18

पावागढ़ महाकाली का मंदिर, जहाँ सब की मुरादे पूरी होती है


पंखिड़ा तू उड़ी ने जजे पावागढ़ रे...।
म्हारी महाकाली ने जई ने किजो गरबो रमे रे...।

गुजरात के पंचमहल जिले में बना पावागढ़ महाकाली  का मंदिर पौराणिक, ऐतिहासिक, धार्मिक और पर्यटन की दृष्टि से प्रदेश के सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थलों में से एक है। यहां की खास बात यह है कि यहां दक्षिणमुखी काली मां की मूर्ति है, जिसका तांत्रिक पूजा में बहुत अधिक महत्व माना जाता है।

महाकाली मंदिर गुजरात के पंचमहल जिले में स्थित पावागढ़ महाकाली का मंदिर पौराणिक, ऐतिहासिक, धार्मिक तथा पर्यटन की दृष्टि से प्रदेश के सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थलों में से एक है.
कालीमाता का यह मंदिर माता के शक्तिपीठों में में शामिल है. शक्तिपीठ उन पूजा स्थलों को कहा जाता है, जहां सती के अंग गिरे थे.



पुराणों के अनुसार, पिता दक्ष के यज्ञ के दौरान अपमानित हुई सती ने योग बल से अपने प्राण त्याग दिए थे. सती की मृत्यु से व्यथित भगवान शिव उनके मृत शरीर को लेकर तांडव करते हुए ब्रह्मांड में भटकते रहे. माता के अंग जहां-जहां गिरे, वहीं शक्तिपीठ बन गये. 

पावागढ़ काली मंदिर से कई ऐतिहासिक और धार्मिक रहस्य जुड़े हुए हैं, जो कि इस जगह को और भी खास बनाते हैं। कुछ बातें भगवान राम के पुत्र लव-कुश से जुड़ी हैं, तो कुछ ऋषि विश्वामित्र से।
आइए अब आपको बताते हैं पावागढ़ से जुड़ी कहानियां-

इसलिए पड़ा इस जगह का नाम पावागढ़-

पावागढ़ के नाम के पीछे एक कहानी प्रचलित है। कहते हैं एक जमाने में इस दुर्गम पर्वत पर चढ़ाई लगभग असंभव थी। चारों तरफ खाइयों से घिरे होने के कारण यहां हवा का वेग भी हर तरफ बहुत ज्यादा रहता है, इसलिए इसे पावागढ़ अर्थात वैसी जगह जहां पवन (हवा) का हमेशा वास हो कहा जाता है।

पावागढ़ पहाड़ियों की तलहटी में चंपानेरी नगरी है, जिसे महाराज वनराज चावड़ा ने अपने बुद्धिमान मंत्री के नाम पर बसाया था। पावागढ़ पहाड़ी की शुरुआत चंपानेर से होती है। 1471 फीट की ऊंचाई पर माची हवेली है। मंदिर तक जाने के लिए माची हवेली से रोपवे की सुविधा उपलब्ध है। यहां से पैदल मंदिर तक पहुंचने लिए लगभग 250 सीढ़ियां चढ़नी पढ़ती हैं।



पौराणिक महत्व

पावागढ़ का पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व है. बताया जाता है कि यह मंदिर अयोध्या के राजा भगवान श्री रामचंद्रजी के समय का है. इस मंदिर को एक जमाने में शत्रुंजय मंदिर कहा जाता था. माघ महीने के शुक्ल पक्ष में यहां मेला लगता है. 

मान्यता है कि भगवान राम, उनके बेटे लव और कुश के अलावा बहुत से बौद्ध भिक्षुओं ने यहां मोक्ष प्राप्त किया था.

पावागढ़ माना जाता है कि सती के दाहिने पैर का अंगूठा गिरने के कारण इस जगह का नाम पावागढ़ हुआ. इसीलिए यह स्थल बेहद पूजनीय और पवित्र मानी जाती है. 

यहां की खास बात यह है कि यहां दक्षिणमुखी काली मां की मूर्ति है, जिसकी तांत्रिक पूजा की जाती है. इस पहाड़ी को गुरु विश्वामित्र से भी जोड़ा जाता है. कहते हैं कि गुरु विामित्र ने यहां मां काली की तपस्या की थी. 


कैसे जाएं- 

वायुमार्ग : यहां से सबसे नजदीक अहमदाबाद का एयरपोर्ट है, जिसकी यहां से दूरी लगभग 190 किलोमीटर और वडोदरा से 50 किलोमीटर है।

रेलमार्ग: यहां का नजदीकी बड़ा रेलवे स्टेशन वडोदरा में है जो कि दिल्ली और अहमदाबाद से सीधी रेल लाइनों से जुड़ा हुआ है। वडोदरा पहुंचने के बाद सड़क यातायात के सुलभ साधन उपलब्ध हैं।

सड़क मार्ग: प्रदेश सरकार और निजी कंपनियों की कई लक्जरी बसें और टैक्सी सेवा गुजरात के अनेक शहरों से यहां के लिए संचालित की जाती है।


सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके । 
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥


नवरात्र के समय इस मंदिर में श्रद्धालुओं की खासी भीड़ उमड़ती है। लोगों की यहां गहरी आस्था है। उनका मानना है कि यहां दर्शन करने के बाद मां उनकी हर मनोकामना पूरी कर देती है।

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