डाकोर का रणछोड़ मंदिर
श्रीकृष्ण की लीला को समझ पाना एक आम इनसान के बस में नहीं। कहीं वे गुरु की भूमिका में नजर आते हैं, कहीं सखा, कहीं भाई और कहीं रणछोड़जी। माना जाता है कि 1722 ई. में यहाँ रणछोड़दासजी मंदिर का निर्माण किया गया था। इस स्थान की गिनती हिंदुओं के पवित्र तीर्थस्थानों में की जाती है।
भक्तों के लिए रणछोड़ मंदिर का महत्व वैसा ही है, जैसा द्वारिका स्थित द्वारिकाधीश मंदिर का। दोनों ही मंदिरों में कृष्ण भगवान की मूर्तियाँ भी श्याम रंग के पत्थर से ही बनाई गई हैं। श्याम रूप में श्यामसुंदर का रूप बेहद मनोहर लगता है। गोमती नदी के किनारे इस मंदिर का निर्माण सफेद संगमरमर से किया गया है। ऊपरी गुंबद में स्वर्ण का आवरण चढ़ाया गया है। यहाँ पहुँचकर महसूस होता है, जैसे आप कृष्ण की नगरी में आ गए हों। हर तरफ हरे कृष्णा ध्वनि का मधुर नाद होता रहता है।
यह मंदिर सुबह 6 बजे से दोपहर 12 बजे तक खुला रहता है और शाम 4 से 7 बजे तक इसके द्वार खुले रहते हैं। प्रतिदिन सुबह 6:45 बजे यहाँ मंगल आरती का आयोजन होता है। इस मंगल आरती को मंगलभोग, बालभोग, श्रीनगरभोग, ग्वालभोग और राजभोग द्वारा संपन्न किया जाता है, जबकि दोपहर में यह उस्थापनभोग, शयनभोग और शक्तिभोग द्वारा सम्पन्न किया जाता है।
प्रत्येक वर्ष विशेषकर पूर्णिमा के अवसर पर लाखों की तादाद में श्रद्धालु डाकोर में दर्शन के लिए आते हैं। डाकोर में मुख्य उत्सव कार्तिक, चैत्र, फागुन और आश्विन पूर्णिमा के अवसर पर आयोजित किए जाते हैं। इस समय मंदिर में एक लाख से भी अधिक श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। आप भी यदि कृष्णभक्ति में सराबोर होना चाहते हैं, तो एक बार डाकोर का रुख अवश्य कीजिएगा। एक बार यहाँ के दर्शन करने के बाद आप बार-बार यहाँ आना चाहेंगे।
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