2016-09-11

बिगड़े काम बनाएं प्रणाम

प्रणाम का महत्व 
प्रणाम करना एक सम्मान है, एक संस्कार है। प्रणाम करना एक यौगिक प्रक्रिया भी है। बड़ों को हाथ जोड़कर प्रणाम करने का वैज्ञानिक महत्व भी है। नमस्कार मन, वचन और शरीर तीनों में से किसी एक के माध्यम से किया जाता है।


भारतीय संस्कृति में जन्म से मृत्यु तक संस्कारों की अमृत धारा प्रवाहित होती रहती है ! अच्छे संस्कार व्यक्ति को यशश्वी , उर्जावान व् गुणवान बनाते हैं ! संस्कार देश की परिधि निर्धारित करती है . 



भारतीय धर्म-ग्रंथों में प्रणाम की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। इसके तहत जब भी कोई व्यक्ति अपने से बड़ों के पास जाता है तो वह प्रणत हो जाता है। प्रणाम का सीधा संबंध प्रणत से है, जिसका अर्थ होता है विनीत होना, नम्र होना और किसी के सामने शीश झुकाना। चूंकि व्यक्ति की कामनाएं अनंत होती हैं। इसलिए यह उस व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह अपने से बड़ों के पास कैसी कामना लेकर गया है। प्रणत व्यक्ति अपने दोनों हाथ जोड़कर और अपनी छाती से लगाकर बड़ों को प्रणाम करता है। 

महाभारत का युद्ध चल रहा था -
एक दिन दुर्योधन के व्यंग्य से आहत होकर "भीष्म पितामह" घोषणा कर देते हैं कि -
"मैं कल पांडवों का वध कर दूँगा"
उनकी घोषणा का पता चलते ही पांडवों के शिविर में बेचैनी बढ़ गई -
भीष्म की क्षमताओं के बारे में सभी को पता था इसलिए सभी किसी अनिष्ट की आशंका से परेशान हो गए|
तब -
श्री कृष्ण ने द्रौपदी से कहा अभी मेरे साथ चलो -
श्री कृष्ण द्रौपदी को लेकर सीधे भीष्म पितामह के शिविर में पहुँच गए -
शिविर के बाहर खड़े होकर उन्होंने द्रोपदी से कहा कि - अन्दर जाकर पितामह को प्रणाम करो -
द्रौपदी ने अन्दर जाकर पितामह भीष्म को प्रणाम किया तो उन्होंने -
"अखंड सौभाग्यवती भव" का आशीर्वाद दे दिया , फिर उन्होंने द्रोपदी से पूछा कि !!
"वत्स, तुम इतनी रात में अकेली यहाँ कैसे आई हो, क्या तुमको श्री कृष्ण यहाँ लेकर आये है" ?
तब द्रोपदी ने कहा कि -
"हां और वे कक्ष के बाहर खड़े हैं" तब भीष्म भी कक्ष के बाहर आ गए और दोनों ने एक दूसरे से प्रणाम किया -
भीष्म ने कहा -
"मेरे एक वचन को मेरे ही दूसरे वचन से काट देने का काम श्री कृष्ण ही कर सकते है"
शिविर से वापस लौटते समय श्री कृष्ण ने द्रौपदी से कहा कि -
"तुम्हारे एक बार जाकर पितामह को प्रणाम करने से तुम्हारे पतियों को जीवनदान मिल गया है " -
" अगर तुम प्रतिदिन भीष्म, धृतराष्ट्र, द्रोणाचार्य, आदि को प्रणाम करती होती और दुर्योधन- दुःशासन, आदि की पत्नियां भी पांडवों को प्रणाम करती होंती, तो शायद इस युद्ध की नौबत ही न आती " -
......तात्पर्य्......
वर्तमान में हमारे घरों में जो इतनी समस्याए हैं उनका भी मूल कारण यही है कि -
"जाने अनजाने अक्सर घर के बड़ों की उपेक्षा हो जाती है "
" यदि घर के बच्चे और बहुएँ प्रतिदिन घर के सभी बड़ों को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लें तो, शायद किसी भी घर में कभी कोई क्लेश न हो "
बड़ों के दिए आशीर्वाद कवच की तरह काम करते हैं उनको कोई "अस्त्र-शस्त्र" नहीं भेद सकता -
"निवेदन  सभी इस संस्कृति को सुनिश्चित कर नियमबद्ध करें तो घर स्वर्ग बन जाय।"


​क्योंकि​:-

​प्रणाम प्रेम है।​
​प्रणाम अनुशासन है।​
प्रणाम शीतलता है।             
प्रणाम आदर सिखाता है।
​प्रणाम से सुविचार आते है।​
प्रणाम झुकना सिखाता है।
प्रणाम क्रोध मिटाता है।
प्रणाम आँसू धो देता है।
​प्रणाम अहंकार मिटाता है।​
​प्रणाम हमारी संस्कृति है।​
        
   
 ​सबको प्रणाम​  


बच्चों को समझाएं कि जो अपनत्व प्रणाम में है वह हाथ मिलाने के आधुनिक व्यवहार में नहीं होता ! पाश्चात्य संस्कृति का दुरूपयोग करने के नकरात्मक प्रभाव आते है , व् स्वास्थ्य के लिए भी खतरा साबित हो सकते हैं ! हेल्लो , हाय , बाय व् हाथ मिलाने से उर्जा प्राप्त नहीं होती ! हमारी आज की युवा पीढ़ी अपनी स्वस्थ परम्परा को ठुकराकर अपने लिए उन्नति के द्वार स्वय बंद कर रहे है ! हाथ मिलाने से बचें , दोनों हाथ जोड़कर या पाँव पर झुक कर अभिवादन की आदत डालें , और हाथ मिलाना से जहाँ तक हो सके बचे क्यूंकि यह स्वास्थ्य के मार्ग में और अध्यात्मिक उत्थान के मार्ग में अवरोधक हैं !


अच्छे संस्कारों में सर्वप्रथम बच्चों को बडो का सम्मान करना सिखाईये ! बच्चों को प्रणाम का महत्व समझाईये ! बच्चों के जीवन की सम्पनता प्रणाम में ही संचित होती है ! जो बच्चे नित्य बडो को , वृद्ध जनों को , व् गुरुजनों को प्रणाम करते हैं और उनकी सेवा करते हैं , उसकी आयु , विद्या , यश और बल सभी साथ साथ बढ़ते हैं ! हमारे कर्म और व्यवहार ऐसे होने चाहिए कि बड़ों के ह्रदय से हमारे लिए आशीर्वाद निकले , और हमारे व्यवहार से किसी के ह्रदय को ठेश न पहुंचे ! प्रणाम करने से हमारे समूचे भावनात्मक और वैचारिक मनोभावों पर प्रभाव पड़ता है जिससे सकरात्मक बढती है ! आयें अपने बच्चों को सही मार्ग दर्शन दें 

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