टोपी और बंदर
एक बार एक टोपियों का व्यापारी जंगल से गुजर रहा था ।थकान मिटाने के लिए एक पेड़ के नीचे लेट गया । कुछ देर में ही उसे नींद आ गई ।
जब उसकी नींद खुली तो उसने देखा कि उसके थैले से सारी टोपियाँ गायब हैं ।
घबरा कर उसने यहाँ वहां देखा तो उसे पेड़ के ऊपर बहुत सारे बन्दर उसकी टोपियां अपने सर पर पहने हुए उछल कूद करते दिखे ।
तो उसने अपनी टोपी को सर से निकाला ।सारे बंदरों ने भी यही किया,फिर व्यापारी ने अपनी टोपी को जमीन पर फेक दिया ।
सारे बंदरों ने भी अपनी अपनी टोपियाँ जमीन पर फेक दीं ।
व्यापारी ने सारी टोपियाँ अपने थैले में भरीं और ख़ुशी ख़ुशी अपने घर आ गया ।उसने ये किस्सा अपने पोतों को सुनाया।
बहुत साल बाद उसका पोता भी
उसी जंगल से टोपियां लेकर गुजरा और एक पेड़ के नीचे सो गया ।
जब उसकी नींद खुली तो उसने देखा की उसकी सारी टोपियाँ थैले से गायब हैं और पेड़ पर बहुत सारे बन्दर उसकी टोपियाँ पहने उछल रहे हैं ।
पहले तो वो घबरा गया तभी उसे अपने दादा की सुनाई हुई कहानी याद आई ।
उसने मुस्कुराते हुए अपने सर की टोपी उतारी और उसे जमीन पर फेक दिया ।
तभी एक बन्दर कूद कर जमीन में आया और उसकी टोपी उठाकर व्यापारी को थप्पड़ मारते हुए बोला -
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साले तू क्या समझता है ,क्या हमारा दादा हमें कहानियाँ नहीं सुनाता ?
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