2015-02-21

गुलज़ार साहब की कविता - झुकने से ही ऊँचाईया मिलती है

गुलज़ार साहब की कविता 


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●●रख हौंसला वो मंज़र भी आयेगा,
प्यासे के पास चलकर,
समंदर भी आयेगा !!
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●●थक कर ना बैठ ऐ,
मंजिल के मुसाफ़िर। मंजिल भी मिलेगी और
जीने का मजा भी आयेगा !!!
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●●क्या हुआ तुमको जो दौलत मिल गयी,
वो सिकंदर भी ख़ाली हाथ गया था।
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●● "जिनकी आंखें आंसू से नम नहीं,
क्या समझते हो उसे कोई गम नहीं।
तुम तड़प कर रो दिये तो क्या हुआ, 
गम छुपा के हंसने वाले भी कम नहीं"
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●●खुद की पहचान बनाने में इतना
समय लगा दो।
की किसी और की निंदा का समय
ही ना हो।।
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●●प्रेम चाहिये तो,
समर्पण खर्च करना होगा।
विश्वास चाहिये तो,
निष्ठा खर्च करनी होगी।
साथ चाहिये तो,
समय खर्च करना होगा।
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●●किसने कहा रिश्ते मुफ्त मिलते हैं,
मुफ्त तो हवा भी नहीं मिलती।
एक साँस भी तब आती है,
जब एक साँस छोड़ी जाती है।।
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●●अजीब तरह के लोग हैं,
इस दुनिया मे।
अगरबती भगवान के लिए खरीदते हैं,
और खुशबू ,
खुद की पसंद की तय करते है।
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●●पिताजी ने ये बोलकर,
घर की चौखट रखी छोटी।
कि बेटा,
झुकने से ही ऊँचाईया मिलती है।

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