विद्यालय प्रांगण मे विशाल छायादार वृक्ष था।
जैसे ही गुरुजी को आभास होता कि अब बच्चोँ को गर्मी लग रही है बाहर सुहानी छाँव मे लग जाती कक्षाएँ।बच्चोँ को भी स्थान परिवर्तन और खुला वातावरण काफी भाता।
गुरुजी तो इतना मुग्ध हो जाते कि कुर्सी मे बैठे-बैठे ही निन्द्रा गति मे पहुँच जाते।
बात फैलने मे ज्यादा दिन नही लगे.
जाँच के लिये अधिकारी महोदय का आगमन हुआ
पर
गुरुजी को इसकी भनक तक न लगी।
पर गुरुजी जस का तस।
साहब गुरुजी के करीब
जाकर खड़े हो गये फिर भी टस से मस न हुये।
जाकर खड़े हो गये फिर भी टस से मस न हुये।
कुछ पल
बाद अचानक गुरुजी ने अपने मुखारविन्द से कड़क
आवाज मे कहा
बाद अचानक गुरुजी ने अपने मुखारविन्द से कड़क
आवाज मे कहा
"हाँ तो बच्चोँ! समझ मे आया!
कुम्भकरण इस तरह सोता था"।
कुम्भकरण इस तरह सोता था"।
कुछ समय बाद साहब विद्यालय से चल दिये।
बाहर
खड़ा शिकायतकर्ता बड़ी ही प्रसन्न मुद्रा मे था कि रंगे हाँथो पकडे गये, गाड़ी रुकवाकर साहब से आतुरता से पूँछा
खड़ा शिकायतकर्ता बड़ी ही प्रसन्न मुद्रा मे था कि रंगे हाँथो पकडे गये, गाड़ी रुकवाकर साहब से आतुरता से पूँछा
सर क्या कार्यवाही की गई?
साहब बोले
"आप लोग बगैर जाने समझे बेकार मे हमे परेशान करते हो ये तो गतिविधि आधारित शिक्षा है"।
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