2016-02-10

क्रोध आए तो किसी पर क्रोधित होने की जरूरत नहीं

क्रोध 

जब भी आपको क्रोध आए तो किसी पर क्रोधित होने की जरूरत नहीं, सिर्फ क्रोधित हो जाएं. इसे एक ध्यान बना लें. 

कमरा बंद कर लें, अकेले बैठ जाएं और जितना क्रोध आए, आने दें. यदि मारने - पीटने क भाव आए तो एक तकिया लें और तकिए को मारे - पीटें. जो करना हो, तकिए के साथ करें, वह कभी मना नहीं करेगा. यदि तकिए को मार डालना चाहें तो एक चाकू लें और तकिए को मार डालें !


यह सब मदद करता है, बहुत गहरी मदद करता है. कोई कल्पना भी नहीं कर सकता कि एक तकिया इतना सहायक हो सकता है. तकिए को पीटें, कांटे, फेंकें. यदि किसी व्यक्ति विशेष के प्रति मन में दुर्भाव हो तो उस व्यक्ति का नाम  तकिए पर लिख लें या उसका चित्र तकिए पर चिपका लें. यह बात बड़ी बेतुकी, मुर्खतापूर्ण लगेगी, लेकिन क्रोध ही बेतुका है, उसके लिए कुछ किया नहीं जा सकता. तो क्रोध को होने दें और ऊर्जा की एक घटना के रूप मे उसका आनंद लें. वह ऊर्जा का ही एक रूप है. यदि हम किसी को पीड़ा नहीं दे रहे तो इसमें कुछ बुराई नहीं है.

थोड़े दिन इस विधि का प्रयोग करेंगे तो आप पाएंगे कि किसी को पीड़ा देने का भाव धीरे - धीरे विलीन हो गया है.


इसे रोज का ध्यान बना लें -- रोज सुबह केवल बीस मिनट इसे करें. और फिर पूरे दिन आप देखेंगे कि आप शांत होने लगे, क्योंकि जो ऊर्जा क्रोध बन रही थी, वह बाहर फेंक दी गई. इसे कम से कम दो सप्ताह करें. और एक सप्ताह बाद ही आप यह देख कर हैरान होंगे किसी भी परिस्थिति में क्रोध नहीं आ रहा है. बस एक बार इसका प्रयोग करके देखे. 


हैमर अॉन दि रॉक 
ओशो 


भीतर क्षमा हो, तो क्षमा निकलेगी।
भीतर क्रोध हो, तो क्रोध निकलेगा।

इस बात को एक मौलिक सूत्र की तरह अपने हृदय में लिखकर रख छोड़ें कि जो आपके भीतर है, वही कलेगा परिस्थितियां चाहे कुछ भी हों। इसलिए जब भी कुछ आपके बाहर निकले, तो दूसरे को दोषी मत ठहराना। वह आपकी ही संपदा है, जिसको आप अपने भीतर छिपाए थे।


-ओशो

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