2016-02-03

प्रेम का मिलन

सधे हुए
होठों को
बाँसुरी बजाने दो।
मोरपंख
रत्नजड़ित
मुकुट पे सजाने दो।
जीवन भर
विष पीकर
मीरा ने पद गाये ,
जन्मों के
अन्धे हम
सूरदास कहलाये ,
उभर रहीं
मन में जो
छवियाँ ,वो आने दो।
द्वापर में
कृष्ण हुए
त्रेता में राम हुए ,
सीता के
संग कभी ,
राधा के नाम हुए ,
हे भटके मन
मुझको
वृन्दावन जाने दो।
तुम तो
हो निराकार
सृष्टि का सृजन तुमसे ,
ऋषियों का
योग- ज्ञान
प्रेम का मिलन तुमसे ,
मुझको भी
प्रेम और
भक्ति के खजाने दो।
।।शुभ प्रभात।।

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