2016-02-10

कविता - नि:शुल्क है

किन्ही सज्जन ने बहुत सुंदर पंकितयाँ लिखी हैं....

यह नदियों का मुल्क है,
पानी भी भरपूर है ।
बोतल में बिकता है,
पन्द्रह रू शुल्क है।

यह शिक्षकों का मुल्क है,
स्कूल भी खूब हैं।
बच्चे पढने जाते नहीं,
पाठशालाएं नि:शुल्क है।

यह गरीबों का मुल्क है,
जनसंख्या भी भरपूर है।
परिवार नियोजन मानते नहीं,
नसबन्दी नि:शुल्क है।

यह अजीब मुल्क है,
निर्बलों पर हर शुल्क है।
अगर आप हो बाहुबली,
हर सुविधा नि:शुल्क है।

यह अपना ही मुल्क है,
कर कुछ सकते नहीं।
कह कुछ सकते नहीं,
बोलना नि:शुल्क है।

यह शादियों का मुल्क है,
दान दहेज भी खूब है।
शादी करने को पैसा नहीं,
कोर्ट मेरिज नि:शुल्क है।

यह पर्यटन मुल्क है,
रेलें भी खूब हैं।
बिना टिकट पकडे गये,
रोटी कपड़ा नि:शुल्क है।

यह अजीब मुल्क है,
हर जरूरत पर शुल्क है।

ढूंढ कर देते है लोग,
सलाह नि:शुल्क है।

यह आवाम का मुल्क है,
रहबर चुनने का हक है।
वोट देने जाते नहीं,
मतदान नि:शुल्क है।

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