2016-03-21

धर्म के चार सोपान

धर्म के चार सोपान हैं, सत, तप, दया और दान, प्रत्येक मनुष्य को धर्म के इन चारों गुणों को अपने हृदय में धारण करना चाहिए।

राजा भरत ने इन चारों गुणों को न केवल अपने हृदय में धारण किया, बल्कि उसे अपने जीवन में भी अपनाया, इसीलिए उन्हें धर्म की धूरी को धारण करने वाले की संज्ञा दी गई है।

सत्य को अपना कर हम हरिशचंद्र भले ही न बन पाएँ, लेकिन युधीष्ठिर तो बन सकते हैं, मन से किए गए जप या तप से हमारे अंतःकरण के दुख, दोष और द्वेष समाप्त हो जाते हैं।

हमें अपने से छोटों पर दया करनी चाहिए, हमारे अंदर ऐसा गुण होना चाहिए कि हम दूसरों पर दया कर सकें, इसी तरह धर्म का चौथा गुण दान हैं।

जिस प्रकार गिलहरी समुद्र निर्माण के समय रेत लाकर डालती थी, उसी तरह यदि हर कोई थोड़ा भी दान करने की आदत डाल लें, तो हम अपने अंतःकरण के दोषों को समाप्त कर सकते हैं।

यज्ञ में हवन करने वाले व्यक्ति को जितना पुण्य मिलता है, उससे ज्यादा पुण्य यज्ञ में सहयोग करने वाले को प्राप्त होता है, इसलिए सभी को आगे आकर यज्ञ करना चाहिए।

पुराणों में मानव कल्याण के लिए वेदों की रचना की गई है, जगह-जगह आयोजित किए जाने वाले महायज्ञ समाज और देश के साथ-साथ विश्व के लिए भी मंगल सूचक है, भारतीय संस्कृति यज्ञ पर ही टिकी हुई है। यज्ञ भारतीय संस्कृति का मेरूदंड है।

गुरु की महिमा सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि उत्तम शिष्य वही है, जो गुरु के कार्यों में सहयोग कर जीवन में गुरु के आचरण को आत्मसात करें, इससे गुरु की शक्ति शिष्य में प्रकट हो जाती है, जिससे शिष्य का जीवन सफल हो जाता है।

आज के पावन दिवस की पावन सुप्रभात आप सभी भाईयो और बहनो के जीवन में सौभाग्य और आरोग्य प्राप्ती की भगवान श्री हरि से प्रार्थना और कामना करता हूँ! 

हरि ॐ तत्सत! !!!

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