यजुर्वेद में औषधीय वनस्पति की प्रार्थना – ‘दीर्घायुस्ते औषधे खनिता …’
प्राचीन वैदिक ग्रंथ यजुर्वेद में औषधीय वनस्पतियों की प्रार्थना संबंधी मंत्र दिये गये हैं । इनमें से दो, मंत्र संख्या 100 एवं 101, इस प्रकार हैं:
दीर्घायुस्त औषधे खनिता यस्मै च त्वा खनाम्यहम् । अथो त्वं दीर्घायुर्भूत्वा शतवल्शा विरोहतात् ।।
(शुक्लयजुर्वेदसंहिता, अध्याय १२, मंत्र १०० )
(दीर्घायुः त औषधे खनिता यस्मै च त्वा खनामि अहम्, अथो त्वं दीर्घायुः भूत्वा शत-वल्शा विरोहतात् । खनिता, खनन करने वाला; शत-वल्शा, सौ अंकुरों वाला; विरोहतात्, ऊपर उठो, आरोहण पाओ)
हे ओषधि, हे वनस्पति, तुम्हारा खनन (खोदने का कार्य) करने वाला मैं दीर्घायु रहूं; जिस आतुर रोगी के लिए मैं खनन कर रहा हूं वह भी दीर्घायु होवे । तुम स्वयं दीर्घायु एवं सौ अंकुरों वाला होते हुए ऊपर उठो, वृद्धि प्राप्त करो ।
त्वमुत्तमास्योषधे तव वृक्षा उपस्तयः । उपस्तिरस्तु सोऽस्माकं यो अस्मॉं२ऽभिदासति ।।
(शुक्लयजुर्वेदसंहिता, अध्याय १२, मंत्र १०१)
(त्वम् उत्तम असि ओषधे, तव वृक्षा उपस्तयः, उपस्तिः अस्तु साः अस्माकं यो अस्मान् अभिदासति । उपस्तयः, उपकार हेतु स्थित (बहुवचन); उपस्तिः उपकार हेतु स्थित (एकवचन); अभिदासति, हानि पहुंचाता है)
हे औषधि, तुम उत्तम हो, उपकारी हो; तुम्हारे सन्निकट लता, गुल्म, झाड़ी, वृक्ष आदि (अन्य वनस्पतियां) तुम्हारा उपकार करने वाले होवें, अर्थात् तुम्हारी वृद्धि में सहायक होवें । हमारी यह भी प्रार्थना है कि जो हमारा अपकार करने का विचार करता हो, जो हमें हानि पहुंचा रहा हो, वह भी हमारी उपकारी बने, हमारे लाभ में सहायक होवे ।
(मोनोकल्चर यानी एक ही प्रजाति की वनस्पतियों को किसी भूखंड पर उगाना ।)
कई वनस्पतियां एक दूसरे के सान्निध्य में ही ठीक-से पनप पाती हैं ।
मुझे यह भी लगता है कि इन औषधियों का सेवन मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी उपयोगी माना जाता था । इसीलिए ऋषिजन प्रार्थना करते थे कि इनके प्रभाव से जो हमसे द्वेष रखता हो उसकी भी मति बदल जाये और वह भी हमारे प्रति हित की भावना रखने लगे । एक स्वस्थ तथा सभ्य समाज के निर्माण में परस्पर उपकार की भावना का होना आवश्यक है । इस कार्य में भी औषधीय वनस्पतियों की भूमिका है, यह वैदिक चिंतकों की मान्यता रही होगी । और उन औषधियों का संरक्षण वे अपना कर्तव्य मानते होंगे । इसी प्रकार के विचार इन मंत्रों में प्रतिबिंबित होते हैं ।
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