2016-03-27

श्रेष्ठता का अहंकार

श्रेष्ठता का अहंकार



ऋषि ने अनुज से सागर का पानी पीने के लिए कहा। अनुज ने जैसे ही पानी मुंह में डाला, वैसे ही उसने बुरा सा मुंह बनाकर पानी बाहर निकाल दिया और बोला-गुरुजी, यह पानी तो खारा है। ऋषि उसे अपने साथ लेकर आगे बढ़ते रहे। आगे एक छोटी सी नदी आई।

ऋषि ने अनुज से नदी का जल पीने के लिए कहा। अनुज ने जैसे ही जल मुंह में डाला, वैसे ही उसके मन को अत्यंत तृप्ति मिली। वह बोला-गुरुजी, नदी के जल ने मुंह का स्वाद बढ़ा दिया है। ऋषि बोले-पुत्र, छोटे-बड़े से कुछ नहीं होता। तुमने सागर के अहं को देखा। वह सब कुछ अपने में ही भरे रहता है।


लेकिन इसका जल खारा होता है। जबकि छोटी सी नदी जो पाती है उसका अधिकांश बांटती है, इसलिए उसके जल में मिठास है। व्यक्ति को बड़े होने पर भी अहं को अपने पास नहीं फटकने देना चाहिए अन्यथा उसका हाल भी सागर की तरह ही होता है। अनुज को अपनी गलती का एहसास हो गया। उसने अपने भीतर से अपना अहं निकाल फेंका।


अहंकार 



अहंकार एक मानसिक शत्रु है जो मन रूपी पुष्प को नष्ट कर डालता है। यह प्रत्येक प्रयत्न के फूल में विनाशकारी कीट की भाँति है। यह आत्मा के उपवन को तुषारापात की भाँति नष्ट कर डालने वाला है।

सबसे खतरनाक बुद्धिमत्ता का अहंकार है, क्योंकि यह परिपक्व और सुविकसित मन में पाया जाता है। यह अत्यन्त चतुर और धोखेबाज भी है। स्त्री और पुरुष अपनी उच्च शिक्षा, योग्यता और विचारशीलता के कारण अपने को दूसरों से श्रेष्ठ समझने लगते है। उनके मन में इस भाव के उत्पन्न होते ही दूसरों को हेय समझने का भाव उठ खड़ा होता है। मैंने बहुधा ऐसे लोगों को इस प्रकार कहते हुए सुना है, ‘इनका स्तर मेरे स्तर से नीचा है।’

कुछ अहंकारी लोग इस प्रकार के भाव को ‘दया’ कह कर पुकारते हैं। यहाँ तक कि जो लोग उनके समान विचार नहीं रखते उन्हें अपना “कमजोर भाई” कह कर पुकारने में संकोच नहीं करते।

इस प्रकार का अहंकार अनेकों आधुनिक सुधारों का अभिशाप बन गया है। ऐसे सुधारकों को कौन नहीं जानता जो अपने प्रति असीम उत्साह और उन लोगों के प्रति जो उनके विचारों से सहमत नहीं है, दया दिखलाते हैं। यह दया यहीं तक सीमित नहीं रहती, प्रत्युत वर्तमान तथा प्राचीन काल के उन महान स्त्री पुरुषों के प्रति भी दिखाई जाती है जिन्होंने उनके सुधारों को अंगीकार नहीं किया। जब ऐसे लोग अपने कार्य को स्वयं निन्दनीय बना देते हैं तब विपत्तियों के विरोध का सामना करना पड़ता है तथा उन पर अनेक लाँछन लगाए जाते हैं जब वे तुरन्त अपने उद्देश्य के लिए शहीद हो जाते हैं। वे इस बात को भूल जाते हैं कि यह सब उन्हीं के विचारों का परिणाम है। उन्होंने जो कुछ बोया था उसी को काट रहे हैं।

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