2016-03-29

उज्जयिनी , अवंतिपुर आज, का उज्जैन

उज्जयिनी शब्द का अर्थ विजयिनी होता है, जिसका पाली समानांतर उज्जैनी है। वैसे उज्जयिनी संस्कृत शब्द है, इसका अर्थ इस प्रकार किया जा सकता है - उज् जयिनी, अर्थात उत्कर्ष के साथ विजय करने वाली। शिल लेखों में प्राकृत शब्द भी उजैनी ही देखा गया है। 



वहीं प्राचीन लेखकों द्वारा यूनानी शब्द ओझेन से इसका नाम उज्जैन रख दिया। स्कंद पुराण के अवंतिखंड के 25वें अध्याय में इसका वर्णन देखा जा सकता है। उसके अनुसार अवंती की राजधानी अवंतिपुर थी,जो उज्जयिनी कहलाती थी। अवंती के देव अध्यक्ष ने महादेव की त्रिपुरा या त्रिपुरी के शक्तिशाली राक्षक अध्यक्ष पर विजय प्राप्त करने के स्वरूप में अवंतिपुर का नाम उज्जयिनी कर दिया था। 

पुराणों के अनुसार उज्जैन के पूर्व में छह कल्पों में छह नाम थे। प्रथम कल्प में यह स्वर्णशृंगा कहलाती थी, द्वितीय में कुशस्थली, तृतीय में अवंतिका, चतुर्थ में अमरावती, पंचम में चूड़ामणि और छठे कल्प में इसका नाम पद्मावती रहा।

स्कंद पुराण के अवंतिखंड के अनुसार शिप्रा तट पर उज्जैन पर बसा हुआ है। पौराणिक मान्यतानुसार इस नगरी के अलग-अलग नाम है, जिसके अंतर्गत श्रीक्षेत्र, अवंतिका, उज्जयिनी, कनकशृंगा आदि नामों से उज्जैन की विशेष पहचान है।

नगरी में विशेष तौर पर उत्तरवाहिनी शिप्रा, दक्षिणेश्वर महाकाल, दक्षिणेश्वरी मां हरसिद्धि, अष्ट महाभैरव, अष्टविनायक, नवनाथ सिद्धि केंद्र, पृथ्वी का नाभि केंद्र पौराणिक आख्यान के अनुसार कालगणना का मुख्य स्थान ओखरेश्वर श्मशान तीर्थ, शक्तिभेद तीर्थ, उसर भूमि, चक्रतीर्थ, चौरासी महादेव सिद्ध स्थान नवनारायण, दिव्य स्थल चार समुद्रों का उदभाषित क्षेत्र, नाग तीर्थ, भुवनेश्वरी स्थल, बेताल की तप:स्थली, विक्रमादित्य का राज्य स्थान, पूर्व में देखें तो त्रेतायुग के अंतर्गत भगवान राम का पिशाच मोचन तीर्थ पर आगमन, हनुमान जी का लंका से शिवलिंग लाते हुए उज्जयिनी में विश्राम तथा हनुमतकेश्वर महादेव की स्थापना हुई है। 

द्वापर युग में गुरु सांदीपनि के सान्निध्य में विष्णु अवतार, श्रीकृष्ण का उज्जयिनी आगमन तथा महर्षि सांदीपनि से 64 कलाओं का ज्ञान तथा यहीं पर भगवान श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र की प्राप्ति, गुप्त फाल्गु नदी का प्राकट्य तथा रामघाट से लेकर सिद्धवट तक अलग-अलग स्थानों पर त्रिवेणी संगम सहित नीलगंगा, गंधवती, शिप्रा सहित 24 संगम तीर्थ तथा एक मात्र 108 हनुमान की यात्रा का पौराणिक महत्व बताता है। 

ऐसे ही अनन्य कथाएं स्कंद पुराण के अवंति खंड में महाकाल, अन्य तीर्थों से जुड़ी हुई अलग-अलग प्रकार से दसों दिशाओं की स्वामीनियां एवं नाग तथा भैरव के रूप में तंत्र की रक्षा के लिए प्रतिनिधि के रूप में इनकी नियुक्ति विशेष रूप से महत्वपूर्ण है यही कारण है कि जीरो रेखांश तथा कर्क रेखा महत्व पूर्ण बिंदु होते हुए संपूर्ण पृथ्वी पर इसका महत्व वैज्ञानिक आध्यात्मिक तथा धार्मिक दृष्टिकोण से तिल भर बड़ा है इसलिए उज्जैन का महत्व अधिक हो गया है।

भारत के हृदयस्थल मध्यप्रदेश के उज्जैन में पुण्य सलिला शिप्रा के तट के निकट भगवान शिव 'महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग' के रूप में विराजमान हैं। महाराजा विक्रमादित्य के न्याय की नगरी उज्जयिनी में भगवान महाकाल की असीम कृपा है। देशभर के बारह ज्योतिर्लिंगों में 'महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग' का अपना एक अलग महत्व है। कहा जाता है कि जो महाकाल का भक्त है उसका काल भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता। महाकाल के बारे में तो यह भी कहा जाता है कि यह पृथ्वी का एक मात्र मान्य शिवलिंग है। 

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