प्रेम की पुकार....
प्रेम मेँ पहली दफा झलकता है
'परमात्मा'
मैँ तुमसे कहता हुं इंसान को प्रेम करो ।
वहां तुम प्रेम का पहला पाठ सिखोगे और
वही पाठ तूम्है इतना मदमस्त कर देगा कि तुम
जल्दी ही पुछने लगोगे ...और बड़ा प्रेमपात्र
कहां खोजुं?
मनुष्य से प्रेम करने से ही तुम्हे अनुभव
होगा कि मनुष्य छोटा पात्र है प्रेम
तो जगा देता है लेकिन त्रप्त नही कर पाता ।'परमात्मा'
मैँ तुमसे कहता हुं इंसान को प्रेम करो ।
वहां तुम प्रेम का पहला पाठ सिखोगे और
वही पाठ तूम्है इतना मदमस्त कर देगा कि तुम
जल्दी ही पुछने लगोगे ...और बड़ा प्रेमपात्र
कहां खोजुं?
मनुष्य से प्रेम करने से ही तुम्हे अनुभव
होगा कि मनुष्य छोटा पात्र है प्रेम
प्रेम को उकसा तो देता है ,लेकिन संतुष्ट
नही कर पाता ।
प्रेम की पुकार तो पैदा कर देता है खोज शुरु हो जाती है ।
लेकिन पुकार इतनी बड़ी है और
आदमी इतना छोटा कि फिर पुकार
पुरी नही हो पाती । फिर वही पुकार ,
जो आदमी को त्रप्त नही कर सकता ,
परमात्मा की तलाश मेँ निकलती है ।
अगर तुम प्रेम तक नही पंहुच पाए तो उसका अर्थ
केवल इतना है कि तुम जो भी इकट्ठा कर रहे
हो , वह सब मौत छीन लेगी ।
इसलिए क्रपण मौत से डरता है ।जीता नहीँ और
मौत से डरता है । जीने की तैयारी करता है ,
जीता कभी नही । क्यो कि जीने मेँ तो खर्च है ।
जीने मेँ तो प्रेम लाना पड़ेगा ।
जीने मेँ तो व्यक्तित्व प्रवेश कर जाएंगे , वस्तुओँ
की दुनिया समाप्त हो जायेगी ।
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