2015-04-15

श्रीमार्कंडेय ऋषि रचित महामृत्युंजय मंत्र

'मृत्यु को जीतने वाला' :- महा मृत्युंजय मंत्र

!! ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः 
ॐ त्र्यम्‍बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् 
उर्वारुकमिव बन्‍धनान् मृत्‍योर्मुक्षीय मामृतात् 
ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ !!


नोट :- घर से निकले पूर्व इस मंत्र का केवल 1 बार जप करने से अकाल मृत्यु, अपघात टल जाते है |
भगवान शिव के उपासक ऋषि मृकंदुजी के घर कोई संतान नहीं थी । 
उन्होंने भगवान शिव की कठिन तपस्या की । 


भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा । 
उन्होंने संतान मांगी । 
भगवान शिव ने कहा, ‘‘तुम्हारे भाग्यमें संतान नहीं है । 
तुमने हमारी कठिन भक्ति की है इसलिए हम तुम्हें एक पुत्र देते हैं । 
लेकिन उसकी आयु केवल सोलह वर्ष की होगी ।’’ 
कुछ समय के बाद उनके घर में एक पुत्र ने जन्म लिया । 
उसका नाम मार्कंडेय रखा । पिता ने मार्कंडेय को शिक्षा के लिए ऋषि मुनियों के आश्रम में भेज दिया । पंधरा वर्ष व्यतीत हो गए । 
मार्कंडेय शिक्षा लेकर घर लौटे । 
उनके माता- पिता उदास थे । 
जब मार्कंडेय ने उनसे उदासी का कारण पूछा तो पिता ने मार्कंडेय को सारा हाल बता दिया । 
मार्कंडेय ने पिता से कहा कि उसे कुछ नहीं होगा । 
माता-पिता से आज्ञा लेकर मार्कंडेय भगवान शिव की तपस्या करने चले गए । 
उन्होंने महामृत्युंजय मंत्र की रचना की । 
एक वर्ष तक उसका जाप करते रहे । 
जब सोलह वर्ष पूर्ण हो गए, तो उन्हें लेने के लिए यमराज आए । 
वे शिव भक्ति में लीन थे । 
जैसे ही यमराज उनके प्राण लेने आगे बढे तो मार्कंडेय शिवलिंग से लिपट गए । 
उसी समय भगवान शिव त्रिशूल उठाए प्रकट हुए और यमराज से कहा कि इस बालक के प्राणों को तुम नहीं ले जा सकते । 
हमने इस बालक को दीर्घायु प्रदान की है । 
यमराज ने भगवान शिव को नमन किया और वहाँ से चले गए । 
तब भगवान शिव ने मार्कंडेय को कहा, ‘तुम्हारे द्वारा लिखा गया यह मंत्र हमें अत्यंत प्रिय होगा । भविष्य में जो कोई इसका स्मरण करेगा हमारा आशीर्वाद उस पर सदैव बना रहेगा’ । 
इस मंत्र का जप करने वाला मृत्यु के भय से मुक्त हो जाता है और भगवान शिव की कृपा उस पर हमेशा बनी रहती है । 
यही बालक बड़ा होकर मार्कंडेय ऋषि के नाम से विख्यात हुआ ।

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