'मृत्यु को जीतने वाला' :- महा मृत्युंजय मंत्र
!! ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्
ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ !!
नोट :- घर से निकले पूर्व इस मंत्र का केवल 1 बार जप करने से अकाल मृत्यु, अपघात टल जाते है |
भगवान शिव के उपासक ऋषि मृकंदुजी के घर कोई संतान नहीं थी ।
उन्होंने भगवान शिव की कठिन तपस्या की ।
भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा ।
उन्होंने संतान मांगी ।
भगवान शिव ने कहा, ‘‘तुम्हारे भाग्यमें संतान नहीं है ।
तुमने हमारी कठिन भक्ति की है इसलिए हम तुम्हें एक पुत्र देते हैं ।
लेकिन उसकी आयु केवल सोलह वर्ष की होगी ।’’
कुछ समय के बाद उनके घर में एक पुत्र ने जन्म लिया ।
उसका नाम मार्कंडेय रखा । पिता ने मार्कंडेय को शिक्षा के लिए ऋषि मुनियों के आश्रम में भेज दिया । पंधरा वर्ष व्यतीत हो गए ।
मार्कंडेय शिक्षा लेकर घर लौटे ।
उनके माता- पिता उदास थे ।
जब मार्कंडेय ने उनसे उदासी का कारण पूछा तो पिता ने मार्कंडेय को सारा हाल बता दिया ।
मार्कंडेय ने पिता से कहा कि उसे कुछ नहीं होगा ।
माता-पिता से आज्ञा लेकर मार्कंडेय भगवान शिव की तपस्या करने चले गए ।
उन्होंने महामृत्युंजय मंत्र की रचना की ।
एक वर्ष तक उसका जाप करते रहे ।
जब सोलह वर्ष पूर्ण हो गए, तो उन्हें लेने के लिए यमराज आए ।
वे शिव भक्ति में लीन थे ।
जैसे ही यमराज उनके प्राण लेने आगे बढे तो मार्कंडेय शिवलिंग से लिपट गए ।
उसी समय भगवान शिव त्रिशूल उठाए प्रकट हुए और यमराज से कहा कि इस बालक के प्राणों को तुम नहीं ले जा सकते ।
हमने इस बालक को दीर्घायु प्रदान की है ।
यमराज ने भगवान शिव को नमन किया और वहाँ से चले गए ।
तब भगवान शिव ने मार्कंडेय को कहा, ‘तुम्हारे द्वारा लिखा गया यह मंत्र हमें अत्यंत प्रिय होगा । भविष्य में जो कोई इसका स्मरण करेगा हमारा आशीर्वाद उस पर सदैव बना रहेगा’ ।
इस मंत्र का जप करने वाला मृत्यु के भय से मुक्त हो जाता है और भगवान शिव की कृपा उस पर हमेशा बनी रहती है ।
यही बालक बड़ा होकर मार्कंडेय ऋषि के नाम से विख्यात हुआ ।
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