बेटे के ऊपर एक कविता ..........
गर घर की रौनक है बेटियां, तो बेटे हो-हल्ला है,
गिल्ली है, डंडा है, कंचे है, गेंद और बल्ला है,
गिल्ली है, डंडा है, कंचे है, गेंद और बल्ला है,
बेटियां मंद बयारो जैसी, तो अलमस्त तूफ़ान है बेटे,
हुडदंग है, मस्ती है, ठिठोली है, नुक्कड़ की पहचान है बेटे,
हुडदंग है, मस्ती है, ठिठोली है, नुक्कड़ की पहचान है बेटे,
आँगन की दीवार पर स्टंप की तीन लकीरें है बेटे,
गली में साइकिल रेस, और फूटे हुए घुटने है बेटे,
गली में साइकिल रेस, और फूटे हुए घुटने है बेटे,
मंदिर की लाइन में पीछे से घुसने की तिकड़म है बेटे,
माँ को मदद, बहन को दुलार, और पिता को जिम्मदारी है बेटे,
कभी अल्हड बेफिक्री, तो कभी शिष्टाचार, समझदारी है बेटे,
कभी अल्हड बेफिक्री, तो कभी शिष्टाचार, समझदारी है बेटे,
बहन की शादी में दिन रात मेहनत में जुट जाते है बेटे,
पर उसही की विदाई के वक़्त जाने कहा छुप जाते है बेटे,
पर उसही की विदाई के वक़्त जाने कहा छुप जाते है बेटे,
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