2015-04-30

गुरु नानक जी

नानक हरिद्वार गए और एक घटना घटी। पितृ-पक्ष चलता था और लोग कुएं पर पानी भर कर आकाश में अपने पुरखों को भेज रहे थे। नानक ने भी बाल्टी उठा ली, कुएं से पानी भरा और लोग तो पूरब की तरफ मुंह करके भेज रहे थे, उन्होंने पश्चिम की तरफ बाल्टी उलटानी शुरू कर दी। और जोर से कहा, पहुंच मेरे खेत में। जब दस-पांच बाल्टी डाल चुके और सब जगह खराब कर दी, पानी से भर दी, तो लोगों ने पूछा कि आप यह कर क्या रहे हैं? आपका दिमाग ठीक है? और पुरखों को जो पानी चढ़ाया जाता है, वह सूर्य की तरफ, पूर्व की तरफ, आप यह पश्चिम की तरफ उलटा धंधा कर रहे हैं! और यह क्या कहते हैं कि पहुंच मेरे खेत में? कहां खेत है तुम्हारा?

नानक ने कहा, यहां से कोई दो सौ मील दूर है। लोग हंसने लगे। उन्होंने कहा, तुम पागल हो; शक तो हमें पहले ही हुआ था। कहीं दो सौ मील दूर यह पानी पहुंच सकता है? नानक ने कहा, तुम्हारे पुरखे कितनी दूर हैं? उन्होंने कहा कि वे तो अनंत दूरी पर हैं। तो नानक ने कहा कि जब अनंत दूरी तक पहुंच रहा है, तो दो सौ मील फासला क्या बहुत बड़ा है! जब तुम्हारे पुरखों तक पहुंच जाएगा तो हमारे खेत तक भी पहुंच जाएगा।

नानक क्या कह रहे हैं? नानक यह कह रहे हैं, थोड़ा चेतो! तुम क्या कर रहे हो? थोड़ा होश संभालो! कहां पानी ढाल रहे हो? इस तरह की मूढ़ताओं से क्या होगा?

लेकिन सारा धर्म इस तरह की मूढ़ताओं से भरा है। कोई पुरखों को पानी पहुंचा रहा है, कोई गंगाओं में स्नान कर रहा है कि पाप धुल जाएंगे, कोई पत्थर की मूर्तियों के सामने बिना किसी भाव के, बिना किसी अर्चना के, सिर झुकाए बैठा है और मांग कर रहा है संसार की। धर्म के नाम पर हजार तरह की मूढ़ताएं प्रचलित हैं।

इसलिए नानक कहते हैं, न तो शास्त्र से मिलेगा, न संप्रदाय से मिलेगा, न अंधे अनुकरण से मिलेगा। धर्म का संबंध होता ही तब है, जब कोई व्यक्ति मनन को उपलब्ध होता है।

जब कोई व्यक्ति जाग जाता है, भीतर सुरति आती है। बस जहां से ओंकार का नाद शुरू होता है, वहीं से धर्म का संबंध शुरू होता है। जिस दिन तुम समर्थ हो जाओगे नाद को सुनने में, करने वाले नहीं रहोगे, सिर्फ सुनने वाले, और भीतर नाद हो रहा है, और तुम आह्लादित हो, तुम साक्षी हो, तुम द्रष्टा हो--उसी दिन तुम्हारा धर्म से संबंध जुड़ जाएगा। निश्चित ही यह धर्म मजहब नहीं हो सकता। यह धर्म रिलीजन नहीं हो सकता। इस धर्म का वही अर्थ है जो बुद्ध के धम्म का। इस धर्म का वही अर्थ है जो महावीर के धर्म का।

धर्म का अर्थ है, स्वभाव। जो लाओत्से का अर्थ है ताओ से, वही धर्म से अर्थ है नानक का। तुम अपने स्वभाव से जुड़ जाओगे। और स्वभाव में हो जाना ही परमात्मा में हो जाना है। स्वभाव से हट जाना, खो जाना है। स्वभाव में लौट आना, वापस घर पहुंच जाना है।


No comments:

Post a Comment