2015-08-18

क्रिया योग Kriya Yoga


जब हम योग  शब्द के अर्थ पर विचार करते हैं, तो इसके मुख्यतः दो अर्थ निकलते हैं, प्रथम जीव और ईश्वर या आत्मा और परमात्मा का मिलन, अर्थात अद्वैत होने की अनुभूति, दूसरा, अभ्यास व वैराग्य के द्वारा चित्तवृतियों को एकाग्र कर समाधी की स्थिती में पहुँच कर परम पिता परमेश्वर से एकाकार होना | जैसा कीयोग शब्द का शाब्दिक अर्थ ऊपर लिखा जा चूका है, की आत्मा जिस मार्ग पर चल कर परमात्मा का दर्शन लाभ करता है उस मार्ग को क्रिया  योग   कहते हैं, अथवा यों कहें कि चित्तवृतियों के विकारों को दूर कर ,  अपने अभीष्ट और अंतिम लक्ष्य परमात्मा के साथ एकाकार होने की क्रिया को क्रिया योग  कहते हैं | जब कि आज कल शरीर  को स्वस्थ रखने की प्रक्रिया व्यायाम को ही योग नाम दे दिया गया है, व्यायाम सम्पूर्ण योग नहीं है, यह मात्र सम्पूर्ण योग का एक अन्श या पक्ष मात्र है  |

परमात्मा के साक्षात्कार के अनेक साधनात्मक मार्ग हैं, उन सभी के साथ भी योग नाम जुड़ गया है , इस प्रकार प्राचीन काल से ही योग  कि अनेक शाखायें प्रचलित हैं उनमे से कुछ निम्न हैं :-

(1 )क्रिया योग (2) राज योग (3) हठ योग (4) जप योग (5) लय योग (6) मन्त्र योग (7) शब्द  योग (8) ज्ञान योग (9) कर्म योग (10) भक्ति योग (11) प्राण योग (12) हंस योग (13) तंत्र योग (14) स्वर योग (15) शिव योग (16) भृगु योग (17) ध्यान योग. … इत्यादी-इत्यादी |

क्रिया योग  को व्यावहारिक व सरल इस लिए भी कहते हैं, कि इसमें जो भी विषय वस्तु बताई व सिखाई जाती है उसकी प्रत्यक्ष अनुभूति साधक कर सकतें हैं , इसी कारण क्रिया योग को सर्वोच्च माना गया है | क्रिया योग कि इन्ही विशिष्टताओं को देख हम कह सकते हैं कि यह कोई चमत्कार नहीं मात्र एक विज्ञान  है, जो विज्ञान की धरातल पर प्रमाणित है | हमारे ऋषियों व  महयोगियों न भारत कि इस अनमोल धरोहर क्रिया योग को आज भी बचा कर रखा है जिसकी महत्ता आज के  वैज्ञानिक भी स्वीकार करते हैं |

सनातन धर्म के साथ ही अनेक अन्य धर्म भी कर्म फल का सिद्धांत स्वीकार करते हैं, कि हम जो भी कर्म करते हैं उस किये गए कर्म का कर्म फल अवस्य मिलता है, हर दुःख व सुख रुपी कार्य का एक कारण होता है, और कारण सदैव भूतकाल में निर्मित होता है | वह भूत काल चाहे इस जीवन का हो या विगत जीवन का , यह सिद्धांत प्रमाणित है कि आज हम जैसा भी जीवन व्यतीत कर रहे हैं, उसके कारण के निर्माता हम खुद हैं, अपने वर्तमान जीवन का निर्माण भूतकाल में हमने ही कभी किया है | सिगमंड फ्रायड  ने यह विचार प्रकट किया है कि मनुष्य जो भी अच्छे व बुरे कर्म करता है वह उसके अवचेतन मस्तिस्क में चली जाती है, अर्थात दर्ज हो जाती है, और फिर अवचेतन मन में दर्ज हुए कर्म रुपी वह संस्कार भविष्य के जीवन को नियंत्रित करते है | इस विचार से यह सिद्ध होता है कि हम अपने भविष्य के निर्माता स्वयं है, तथा हम अपना जन्म व पुनर्जन्म स्वतः चुनते हैं  |

         उपरोक्त कारणों के कारण ही भारतीय ऋषियों, महयोगियों ने नियमित, सयंमित व साधनात्मक  जीवन जीने, एवम् आत्म विकास के लिए विभिन्य साधना पद्दतियों को विकसित किया, जो समस्त संसार के लिए सुलभ है |


क्रिया योगी  अपने जीवन को अभ्यास व साधना मार्ग पर अग्रसर कर निरंतर अभ्यास द्वारा समाधी कि अवस्था में पहुँच कर अवचेतन मन में जन्म जन्मान्तरो के दर्ज अच्छे-बुरे कर्म रुपी संस्कार को मिटा कर, स्वयं को कर्म फल के बंधन से मुक्त कर लेता है, अर्थात पुर्णतः समाप्त कर देता है , और जब कोई संस्कार ही शेष नहीं बचते, तो कार्य के होने का कारण ही शेष नहीं बचता | अर्थात आत्मा का अंतिम लक्ष्य दुखों से निवृति , अर्थात मोक्ष कि प्राप्ति होती है, और दुःख रुपी संसार में आवागमन से मुक्ति मिल जाती है | इसी लिए हमारे ऋषि व महयोगियों के द्वारा प्रणीत इस विधा क्रिया योग  कि महत्ता को  आधुनिक वैज्ञानिको ने भी स्वीकारा है |

     भारत का प्राचीन काल से आत्म ज्ञान से परिपूर्ण गौरवशाली इतिहास रहा है, यंहा जीवन के मूलभूत प्रश्न पर हमारे ऋषि, महयोगियों रुपी वैज्ञानिको ने अपनी तपस्या व शोध से ऐसे सिद्धांतो का प्रतिपादन किया, तथा समस्त विश्व समुदाय के समक्ष रखा जिसे अपना कर समस्त विश्व अपना आत्म कल्याण कर सकता है | सदियों की दासता, प्रताड़ना तथा मिटा देने कि कोशिश के बावजूद, आज हमारी जो विरासत बची हुई है, उसकी तरफ समस्त विश्व आशान्वित हो देख रहा है | भारत की भूमि कभी भी ऋषियों, महयोगियों तथा समस्त मानव समाज का काया कल्प कर देने वाले ज्ञानियों से रिक्त नहीं रहा है. यह भूमि हर सताब्दी में एक अम्बर का पैगाम देने वाले  पैगम्बर अर्थात “ईश्वरीय ज्ञान देने वाला युग महापुरुष, इश्वर दूत” उत्त्पन्न करती है |


No comments:

Post a Comment