हम स्वयं अपने भाग्य के विधाता हैं।
हम स्वयं अपने भाग्य के विधाता हैं। हमारे भाग्य का विधाता कोई दूसरा नहीं है। हमारे भाग्य की बागडोर हमारे ही हाथ में है। दूसरा कोई उसे थामे हुए नहीं है। न किसी के आगे गिड़गिड़ाओ और न किसी पर दोषारोपण करो। कभी भी यह न सोचो कि अमुक आदमी ने हमारे भाग्य को बिगाड़ दिया। हम अपने नेक कामों से अपने भाग्य के खराब क्षणों को सुखद बना सकते हैं।
हम स्वयं अपने भाग्य के विधाता हैं। एक बहुत पुरानी सच्ची कहानी जो यह सिद्द्ध करती है ---
एक बार दो सगे भाई एक बहुत नामी ज्योतिषी के पास गए। ज्योतिषी बड़ा अनुभवी था। उसने दोनों को देखा। छोटे से उसने कहा- तुम्हें कोई राज्य मिलने वाला है। तुम बड़े शासक बनोगे। बड़े भाई से कहा-सावधान रहना। कोई बड़ी विपत्ति आने वाली है। एक बहुत खुश हुआ, दूसरा बहुत उदास। दोनों घर आ गए। दूसरे ने ज्योतिषी की भविष्यवाणी पर काफी गंभीरता से मंथन किया।
उसने सोचा- अब चिंता की क्या बात है? राज्य मिलने वाला है। उसमें अहंकार आ गया। दुनिया भर की जितनी बुरी आदतें थीं, उसने सब शुरू कर दिए। धन को उजाड़ना शुरू कर दिया। शराब पीना शुरू कर दिया। मांस खाना शुरू कर दिया। दुनिया की सारी बुराइयों में लिप्त हो गया। उसका व्यवहार तानाशाह जैसा हो गया, वह किसी को कुछ भी न समझता।
तभी किसी राजा का पुत्र मर गया। पीछे कोई था नहीं। राजा ने सोचा, बूढ़ा हूं। व्यवस्था करूं। राजा ने एक पद्धति अपनायी और उसमें बड़ा भाई उत्तीर्ण हो गया। बड़ा भाई राजा बना तो छोटे को अजीब लगा। दोनों ने ज्योतिषी को बुलाया और कहा कि आपने उल्टी बात बता दी। ज्योतिषी ने कहा- ठीक बात बताई थी। उस समय जो होने वाला था, वही बताया। बताओे कि मेरे बताने के बाद तुम दोनों ने क्या-क्या किया?
दोनों भाइयों ने अपनी-अपनी कहानी सुनाई। ज्योतिषी ने कहा- मैं क्या करूं? ज्योतिष का जो नियम था उसी के आधार पर मैंने बताया था। तुमने बुरा आचरण किया। तुम्हें राज्य मिलने वाला था, किंतु बुरे आचरण के कारण नियम बदल गया और दूसरा लागू हो गया। उसने इतना अच्छा आचरण किया कि विपत्ति बदल गई और इसने सौभाग्य का वरण कर लिया।
हम स्वयं हैं अपने भाग्य के निर्माता। हम चाहें तो जीवन में घटित होने वाली बुरी से बुरी घटना को टाल सकते हैं। कोई दूसरा कर्त्ता नहीं है। कोई दूसरा नियंता नहीं है। हम स्वयं अपने भाग्य के विधाता हैं।
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