2014-11-12

ज़िन्दगी के बुलबुलों को चलो कुछ और फुलाएं

चलो ज़िन्दगी के इस बुलबुले को
कुछ और फुलाएं,

एक मुस्कान तुम फूंको और एक मैं.
सरकती हुई बैलगाड़ी को
धडधडाती रेल के पहिये लगाएं.
इस फीकी दाल में,
कुछ चटपटा छोंक लगाएं.
आओ ज़िन्दगी के बुलबुले को,
कुछ और फुलाएं.



रुकी हुई घडी की
चाबी फिर घुमाएँ,
सूखी हुई झाड़ियों के बदले,
तारो ताज़ा वृक्ष फिर उगाएं.
ठहरे हुए पानी में,
किसी तरह फिर उबाल लाएं.
ज़िन्दगी के बुलबुलों को,
चलो कुछ और फुलाएं .

बुरी खबरों को भुला के,
कुछ बढ़िया लतीफे सुनाएं.
किस्मत के कटोरे को,
खुशियों से लबालब भराएँ.
अपने मन के अंधेरों में,
उम्मीद के जुगनू फिर जगमगाएं.
समय की पेटी से,
कुछ दिलचस्प पल फिर चुराएँ. 

ज़िन्दगी के बुलबुलों को,
चलो कुछ और फुलाएं .


पियूष अग्रवाल

No comments:

Post a Comment