मोतियों की
मालिका मैंने कहीं ,
आँख से जब दर्द की बूदें बहीं ,
ले इन्हें घूमा बहुत संसार में ,
आँसुओं का मूल्य जग में कुछ नहीं।
साथ किसका कौन देता है यहाँ ?
काम किसके कौन आता है कहाँ ?
भीड़ को साथी समझना भूल है ,
जब सहा जिसने अकेले ही सहा।
हरिवंश राय बच्चन
No comments:
Post a Comment