गुरू नानक देव जयंती
'अव्वल अल्लाह नूर उपाया, कुदरत के सब बंदे; एक नूर ते सब जग उपज्या, कौन भले को मंदे' का संदेश देने वाले गुरू नानक देव का जन्म कार्तिक पूर्णिमा के दिन 1469 में हुआ था.
सिक्ख धर्म के संस्थापक गुरुनानक देवजी के जन्मदिवस को प्रकाश पर्व के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है. गुरुनानक जयंती के पर्व को सिक्ख धर्म के लोगों के अलावा अन्य धर्म के लोग भी खासे उत्साह से मनाते हैं.
हमारे युवाओं को जानना चाहिए कि सिक्ख गुरुओं ने क्या बलिदान दिए हैं। सिक्खों के बलिदान से हमारा देश संरक्षित रहा। इस भाव को काश्मीर से कन्याकुमारी तक हर बच्चे में उजागर करने की आवश्यकता है। भ्रष्टाचार इसीलिए है क्योंकि आज बलिदान की भावना नहीं है। गुरबानी सुनने से सेवा के प्रति उत्साह और जोश जागृत होगा।
सिख होना बड़ा कठिन है। गृहस्थ होना आसान है। संन्यासी होना आसान है, छोड़कर चले जाओ जंगल में। सिख होना कठिन है क्योंकि सिख का अर्थ है- संन्यासी, गृहस्थ एक साथ। रहना घर में और ऐसे रहना जैसे नहीं हो। रहना घर में और ऐसे रहना जैसे हिमालय में हो। करना दुकान, लेकिन याद परमात्मा की रखना। गिनना रुपए, नाम उसका लेना।
नानकदेव का मन धर्म और अध्यात्म की ओर था, इसलिए वो अपनी पत्नी और बच्चों को ससुराल में छोड़कर धर्म के मार्ग पर निकल गए. गुरुनानकजी ने अपने पूरे जीवन में सामाजिक कुरीतियों का पुरजोर विरोध किया.
गुरुनानक देवजी के जन्मदिवस पर सभी गुरुद्वारों में पूजनीय ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब का अखंड पाठ किया जाता है और गुरु ग्रंथ साहिब को फूलों से सजाया जाता है. इसके बाद इस पवित्र ग्रंथ को पालकी में रखकर नगर कीर्तन का आयोजन किया जाता है.
नगर कीर्तन में गुरु ग्रंथ साहिब की सुसज्जित पालकी भव्य समारोह के रूप में निकाली जाती है. पालकी के आगे-आगे पंजप्यारे चलते हैं और श्रद्धालु चल समारोह के लिए मार्ग को साफ करते हैं. इस पर्व के दिन लोगों में खासा उत्साह देखने को मिलता है. यह पर्व हमें गुरुनानक देवजी के बताये मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है . प्रकाश पर्व के दिन लगभग हर गुरुद्वारे में लंगर लगाया जाता है.
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