बच्चों के दिलों की धड़कनों को सुनने के लिए लिये सचमुच बच्चों जैसा कोमल दिल होना चाहिए। एक मासूम-सी चाहत जहाँ अनजाने में ही आने वाले कल को कुछ कर दिखाने का वचन दे रही हो उस चाहत को किसी भी सूरत में आहत न होने देना वास्तव में एक बड़ी जिम्मेदारी और समझदारी से भरा काम है।
शायद यही वज़ह है कि हरेक दिल में छुपा कोई बच्चा बार-बार बेचैन हो कर पुकार उठता है कि मुझे अगर सुनना है तो सयानेपन से नहीं, मुझ जैसी मासूमियत से ही बात बन सकती है।
इसलिय बच्चों की तकलीफों को दिल से जानने और समझने के लिये बच्चा ही बनना पड़ता है । बाल दिवस पर हम ये संकल्प करे की बच्चों की बातो या तकलीफों को समझने के लिए बच्चों जैसा ही बन कर उनकी भावनाओ को समझे ।
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