2014-10-24

गोवर्धन पूजा (Govardhana Puja)

Forth day of Deepawali Festival .....Govardhana Puja



गोवर्धन पूजा का दिन दीवाली पूजा के अगले दिन पड़ता है और इस दिन को भगवान कृष्ण द्वारा इन्द्र देवता को पराजित किये जाने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। कभी-कभी दीवाली और गोवर्धन पूजा के बीच एक दिन का अन्तराल हो सकता है।

धार्मिक ग्रन्थों में कार्तिक माह की प्रतिपदा तिथि के दौरान गोवर्धन पूजा उत्सव को मनाने का बताया गया है। हिन्दू कैलेण्डर में गोवर्धन पूजा का दिन अमावस्या तिथि के एक दिन पहले भी पड़ सकता है और यह प्रतिपदा तिथि के प्रारम्भ होने के समय पर निर्भर करता है।

गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पूजा भी कहा जाता है। इस दिन गेहूँ, चावल जैसे अनाज, बेसन से बनी कढ़ी और पत्ते वाली सब्जियों से बने भोजन को पकाया जाता है और भगवान कृष्ण को अर्पित किया जाता है।

महाराष्ट्र में यह दिन बालि प्रतिपदा या बालि पड़वा के रूप में मनाया जाता है। वामन जो कि भगवान विष्णु के एक अवतार है, उनकी राजा बालि पर विजय और बाद में बालि को पाताल लोक भेजने के कारण इस दिन उनका पुण्यस्मरण किया जाता है। यह माना जाता है कि भगवान वामन द्वारा दिए गए वरदान के कारण असुर राजा बालि इस दिन पातल लोक से पृथ्वी लोक आता है।


अधिकतर गोवर्धन पूजा का दिन गुजराती नव वर्ष के दिन के साथ मिल जाता है जो कि कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष के दौरान मनाया जाता है। गोवर्धन पूजा उत्सव गुजराती नव वर्ष के दिन के एक दिन पहले मनाया जा सकता है और यह प्रतिपदा तिथि के प्रारम्भ होने के समय पर निर्भर करता है।

On this day, Govardhana Puja is performed. Many thousands of years ago, Lord Krishna caused the people of Vraja to worship this sacred hill. From then on, every year, Hindus worship Govardhana to honour that first Puja done by the people of Vraja.
It is written in the Ramayana that when the bridge to Lanka was being built by the Vanara army, Hanuman (a divine loyal servant of Lord Rama possessing enormous strength) brought a mountain as material to help with the construction of the bridge. When a call was given that enough materials had already been obtained, Hanuman placed the mountain down before he reached the construction site. Due to lack of time, he did not return the mountain to its original place.


The deity presiding over this mountain spoke to Hanuman asking of his reason for leaving the mountain there. Hanuman replied that the mountain should remain there until the age of Dvapara when Lord Rama incarnates as Lord Krishna, who will shower His grace on the mountain, and will instruct that the mountain be worshiped not only in that age but in ages to come. This deity whom Hanuman spoke to was none other than Govardhana (an incarnation of Lord Krishna), who manifested Himself in the form of the mountain.

To fulfill this decree, Govardhan Puja was performed and this celebration is continued to this day.

गोवर्धन पूजा हमारी अमिट और पौराणिक सांस्कृतिक धरोहर है, जो हमें अपनी प्रकृति के जतन के लिए सदैव प्रेरित करती है। भारतीय संस्कृति में हजारों वर्ष पहले गोवर्धन पूजा के माध्यम से पर्यावरण को बचाने का संदेश दिया गया है। आज के परिपेक्ष में जहां ग्लोबल वार्मिंग एक चिंता का विषय है, गोवर्धन पूजा का महत्व और भी ज़्यादा बढ़ गया है। यह पूजा केवल अनुष्ठान नहीं पर हमारी प्रकृति के प्रति समर्पण की प्रतिज्ञा है। आज परिवार और सहयोगियों के साथ गोवर्धन पूजा कर देश-प्रदेश में गो-वंश और कृषि उन्नति की कामना करे .

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