भय पर भूत-प्रेत जीये, यह तो समझ में आता है,
लेकिन भय पर ही भगवान
का भी जीना बहुत अशोभन है!
और फिर जब भगवान ही भय पर जीये,
तब तो भय के भूत-प्रेतों से मुक्ति का कोई उपाय
ही नहीं है!
मैं कहता हूं! भगवान का भय से कोई संबंध
नहीं है! निशचय ही भगवान
की आड़ में इस भय का शोषण कोई और
ही कर रहा है!
धर्म धार्मिकों के हाथ में नहीं है! कहते है
कि जब भी सत्य का कोई अविष्कार होता है तो शैतान
सबसे पहले उस पर कब्ज़ा कर लेता है! धर्म का अविष्कार
जिन आत्माओं में होता है, और धर्म का व्यवसाय जो करते है,
उनमें भिन्नता ही नहीं, आधारभूत विरोध
है! धर्म सदा से ही स्वयं के शत्रुओं के हाथ में
है! यदि इस तथ्य को समय रहते
नहीं समझा गया तो मनुष्य का भविष्य सुंदर और
स्वागतयोग्य नहीं हो सकता है!
धर्म को अधार्मिकों से नहीं, तथाकथित धार्मिकों से
ही बचाना है! और निश्चय ही यह
कार्य ज्यादा कठिन और कष्टसाध्य है!
---ओशो (मिट्टी के दीये)
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