छठ पूजा परंपरा
दिवाली के ठीक छह दिन बाद मनाए जाने
वाले छठ महापर्व का हिंदू धर्म में विशेष स्थान है। छठ पूजा के परंपरा की ओर
दृष्टि डालें तो इसका प्रारंभ महाभारत काल में कुंती द्वारा सूर्य की आराधना व
पुत्र कर्ण के जन्म के समय से माना जाता है। मान्यता है कि छठ देवी सूर्य देव की
बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए सूर्य और जल की महत्ता को मानते हुए, इन्हें साक्षी मान
कर भगवान सूर्य की आराधना की जाती है।
हमारे देश में सूर्योपासना के लिए
प्रसिद्ध पर्व है छठ। मुख्य रूप से इसे सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा
गया है। यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है।
पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक
में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व
कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है।
पारिवारिक सुख-समृद्धि तथा
मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है।
इस पर्व को स्त्री और पुरुष समान रूप से मनाते हैं। छठ पूजा की परंपरा और उसके महत्व का प्रतिपादन करने वाली अनेक पौराणिक और लोक कथाएं प्रचलित हैं।
इस पर्व को स्त्री और पुरुष समान रूप से मनाते हैं। छठ पूजा की परंपरा और उसके महत्व का प्रतिपादन करने वाली अनेक पौराणिक और लोक कथाएं प्रचलित हैं।
तमाम
सभ्यताओं में है सूर्य की पूजा वैसे तो दुनिया की तमाम सभ्यताओं में
सूर्य पूजा का रिवाज रहा है, लेकिन छठ महापर्व के अलावा कहीं भी डूबते सूर्य की पूजा-अर्चना की परंपरा
का इतिहास नहीं मिलता है। छठ पर्व में पहले अस्ताचल सूर्य की पूजा होती है और उसके
अगले दिन उदयाचल सूर्य की।
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